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________________ ४१२ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : २ प्रो. वाल्टर शूबिंग ने सम्पादन किया तथा सन् १९१० में लिप्ज़ग से इसका प्रकाशन किया। प्राचार्य भद्रबाहुकृत नियुक्ति तथा प्राचार्य शीलांक रचित टीका के साथ सन् १९३५ में आगमोदय समिति, बम्बई द्वारा इसका प्रकाशन हुआ । २. सूयगडंग (सूत्रकृतांग) সুগন্ধনা ঔ নাম सूत्रकृतांग के लिए सूयगड, सुत्तकड तथा सूयागड; इन शब्दों का प्रयोग हुआ हैं। सूयगड या सुत्तकड का संस्कृत-रूप सूत्रकृत है। इसकी शाब्दिक व्याख्या इस प्रकार हैअर्थरूपतया तीर्थंकरों से सूत्र का उद्भव हुआ, उससे गणधरों द्वारा किया गया या निबद्ध किया गया ग्रन्थ । इस प्रकार सूत्रकृत शब्द फलित होता है। अथवा सूत्र के अनुसार जिसमें तत्वावबोध कराया गया हो, वह सूत्रकृत है। सूयागडं का संस्कृत रूप सूत्राकृत है। इसका अर्थ है-स्व और पर समय-सिद्धान्त का जिसमें सूचन किया गया हो, वह सूचाकृत या सूयागड है। सूत्र का अर्थ भगवद्भाषित और कृत का अर्थ उसके आधार पर गणधरों द्वारा किया गया या रचा गया-इस परिधि में तो समस्त द्वादशांगी हो समाहित हो जाती है। अतः सूत्रकृतांग की ही ऐसी कोई विशेषता नहीं है। स्व-अपने, पर-दूसरों के समयसिद्धान्तों या तात्विक मान्यताओं के विवेचन का जो उल्लेख किया गया है, वह महत्वपूर्ण है। वैसा विवेचन इसी प्रागम में है, अन्य किसी में नहीं। सूत्रता का स्वरूप : कलेवर यह दो श्रुत-स्कन्धों में विभक्त है। प्रथम श्रुत-स्कन्ध में सोलह तथा दूसरे में सात अध्याय हैं। पहला श्रु त-स्कन्ध प्रायः पद्यों में है। उसके केवल एक अध्ययन में गद्य का प्रयोग हुअा है। दूसरे श्रुत-स्कन्ध में गद्य और पद्य दोनों पाये जाते हैं। इस आगम में गाथा छन्द के अतिरिक्त इन्द्रवज्रा वैतालिक, अनुष्टुप् आदि अन्य छन्दों का भी प्रयोग हुआ है। १. सूयगडं अंगाणं, बितियं तस्स य इमाणि नामाणि । सूयगडं सुत्तकडं, सूयागडं चेव गोरणाइ ॥ सूत्रकृत मिति-एतदंगानां द्वितीयं तस्य चामून्येकाथिकानि, तद्यथा-सूत्रमुत्पन्नमर्थरूपतया तीर्थकृम्यः ततः कृतं ग्रन्थरचनया गणधरैरिति तथा सूत्रकृतमिति सूत्रानुसारेण तत्वावबोधः क्रियतेऽस्मिन्निति तथा सूचाकृतमिति स्वपरसमयार्थसूचनं सूत्रा सास्मिन् कृतेति । एतानि चास्य गुणनिष्पन्नानि नामानि । -अभिधान राजेन्द्र, सप्तम भाग, पृ० १०२७ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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