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भाषा और साहित्य ]
आर्ष (अर्द्धमागधी) प्राकृत और आगम वाङमय [ ४१३
विभिन्न वादों का उल्लेख
पंचभूतवाद ब्रह्मकवाद-पद्धत वाद या एकात्मवाद, देहात्मवाद, अज्ञानवाद, प्रक्रियावाद, नियतिवाद, आत्म अकर्तृत्ववाद सद्वाद, पंचस्कन्धवाद तथा धातुवाद आदि का इसके प्रथम स्कन्ध में प्ररूपण किया गया है। तत्पक्षस्थापन और निरसन का एक सांकेतिक-सा अस्पष्ट-सा क्रम वहां है। इससे यह बहुत स्पष्ट नहीं होता कि उन दिनों अमुक-अमुक वाद किस प्रकार की दार्शनिक परम्पराएं लिये हुए थे। हो सकता है, इन वादों का तब तक किसी व्यवस्थित तथा परिपूर्ण दर्शन के रूप में विकास न हो पाया हो। इन वादों पर अवस्थित दार्शनिक परम्पराओं ( Schools of Philosophy ) के ये प्रारम्भिक रूप रहे हों। श्रमणों द्वारा भिक्षाचार में सतर्कता, परिषहों के प्रति सहनशीलता, नरकों के कष्ट, साधुनों के लक्षण, ब्राह्मण, श्रमण, भिक्षु तथा निग्रन्थ जैसे शब्दों की व्याख्या उदाहरणों तथा रूपकों द्वारा अच्छी तरह की गयी है। उल्लिखित मतवादों की चर्चा सम्बन्धित व्याख्या ग्रन्थों में विस्तार से भी मिलती है।
द्वितीय श्रुत-स्कन्ध में पर-मतों का खण्डन किया गया है-विशेषत: वहां जीव व शरीर के एकत्व, ईश्वरकर्तृत्व, नियतिवाद प्रादि की चर्चा है। प्रस्तुत श्रुत-स्कन्ध में आहार-दोष, भिक्षा-दोष आदि पर विशेष प्रकाश डाला गया है। प्रसंगवश भौम, उत्पाद स्वप्न, स्वर, व्यंजन, स्त्री-लक्षण आदि विषयों का भी निरूपण हुआ है। अन्तिम अध्ययन का नाम नालन्दीय है। इसमें नालन्दा में हुए गौतम गणधर और पावापत्यिक उदक पेढालपुत्त का वार्तालाप है। अन्त में उदक पेढाल पुत्त द्वारा चतुर्याम धर्म के स्थान पर पंच महाव्रत स्वीकार करने का वर्णन है ।
प्राचीन मतों, वादों और दृष्टिकोणों के अध्ययन के लिए तो यह श्रु तांग महत्त्वपूर्ण है हो, भाषा की दृष्टि से भी विशेष प्राचीन सिद्ध होता है । भाषा-वैज्ञानिक भी इसमें अध्ययन की प्रचुर सामग्री पाते हैं । व्याख्था-साहित्य
प्राचार्य भ्रद्रबाहु ने सूत्रकृतांग पर नियुक्ति की रचना की। प्राचार्य शीलांक ने बाहरि गणी के सहयोग से टीका लिखी। चूणि भी लिखी गयी। हर्ष कुल और साधुरंग द्वारा दीपिकाओं की रचना हुई। डा० हर्मन जैकोबी ने अंग्रेजी में अनुवाद किया, जो Sacred Books of the East के पैंतालीसवें भाग में आक्सफोर्ड से प्रकाशित हुआ।
३. ठाणांग ( स्थानांग) दश अध्ययनों में यह श्रु तांग विभाजित है । इसमें ७८३ सूत्र हैं । उपर्युक्त दो श्र तांगों से इसकी रचना भिन्न कोटि की है। इसके प्रत्येक अध्ययन में, अध्ययन की संख्या के अनुसार वस्तु-संख्याएं गिनाते हुए वर्णन किया गया है। उदाहरणार्थ, पहले अध्ययन में
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