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________________ ४०० । आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : २ गृहस्थों के सम्पर्क में रहने का अवसर प्राने पर भी वे उनसे धुलते-मिलते नहीं। उनकी ओर से ध्यान हटा धर्म या शुक्ल ध्यान में लीन रहते। उनके पूछने पर भी उत्तर नहीं देते। अभिवादन करने पर भी भाषण नहीं करते । सर्वसाधारण के लिए ऐसा करना बड़ा दुष्कर है। सभा से कष्ट सहन __ जब वे अनार्य-देशों में जाते, पुण्यहीन प्राणी उन्हें डण्डों से पीटते, उनके बाल नोंचते, पर वे सम-भाव से सब सहते । कुतूहल तथा विस्मय से दूर ___कथा, नृत्य, गीत प्रादि देख कुतूहल अनुभव नहीं करते। दण्ड-युद्ध, मुष्टि-युद्ध से विस्मित नहीं होते। किन्हीं को काम-कथा लीन देख न हर्ष करते, न शोक करते, अपितु सर्वथा तटस्थ रहते। अपरिग्रह की पराकाष्ठr ___ भगवान् अचेलक और पाणिपात्र थे। वे दूसरे का दिया वस्त्र या पात्र स्वीकार नहीं करते थे। रसों में अनासक्त : सुविधा से दूर वे दूध दही आदि रसों में प्रासक्ति नहीं रखते थे। प्रांख में रज आदि गिर जाने पर उसे नहीं पोंछते थे न ही निकालते थे, खुजली आने पर भी शरीर को नहीं खुजलाते थे । নাম বৃথা ___ वे सामने युग-प्रमाण मार्ग का अवलोकन कर चलते थे। इधर-उधर या पीछे नहीं देखते थे। किसी के पूछने पर उत्तर नहीं देते, मौन रहते थे। शीत से अभीत देव-दूष्य के त्याग के अनन्तर शिशिर ऋतु में वे दोनों हाथ फैलाकर चलते थे। शीत से घबड़ा कर न वे हाथ सिकोड़ते और उन्हें न कन्धों पर ही रखते । विहार करते-करते जहां चरम पौरुषी का समय प्राता, वहीं रात्रि व्यतीत करते । কলা অানন জীবন ? कभी भीतवाले खाली घरों में, सभाओं - विश्रान्ति गृहों में, पानी की प्याऊ में, दूकानों में, लोहकार-शालाओं में, घास से बने मंचों-मचानों के नीचे, गांव के बाहर ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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