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________________ विषयानुक्रम ५५१ ५५४ ५५५ ५५५ ५५७ ५५८ ५५९ ५५९ ५६५ विमर्श: समीक्षा प्रार्य जम्बू तक दोनों परम्पराए अन्तर : एक सम्भावना आर्य जम्बू के वाद भेद का उभार द्विविध प्रक्रिया प्राचार्य महागिरि : एक प्रसंग सारांश उपसंहार समन्वय का एक अभिनव प्रयत्न यापनीय संघ का उद्भव दर्शनसार में उल्लेख रत्ननन्दी के अनुसार यापनीय संघ इन्द्रनन्दी के विचार श्रु तसागर द्वारा विश्लेषण गुणरत्न द्वारा चर्चा यापनीय संघ के नामान्तर एक और कल्पना यापनीय संघ : अाकर्षण : प्रभाव प्रतिष्ठा : राज-सम्मान कुछ महत्वपूर्ण दान-पत्र कागवाड़ का शिलालेख यापनीय संघ का अनेक गणों में विस्तार यापनीय प्राचार्य : साहित्यिक धारा : श्वेताम्बर-आगम शिवार्य : शिवकोटि आराधना : कुछ प्रश्न-चिह न ?? शाकटायन द्वारा शिवार्य की चर्चा अपराजित सूरि का विवेचन शाकटायन : यापनीययतिग्रामाग्रणी शाकटायन व्याकरण में श्वेताम्बर-पागम सम्बन्धी संकेत ५६५ ५६६ ५६७ ५६८ ५७१ ५७१ ५७२ ५७३ ५७३ ५७४ ५७६ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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