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________________ ४० Jain Education International 2010_05 विचारणीय पहलू प्राचार्य रत्ननन्दी का अभिमत अर्द्ध फालक मत से श्वेताम्बर ऊहापोह एकाधिक भद्रबाहु दिगम्बर परम्परा में भद्रबाहु प्रथम भद्रबाहु द्वितीय भद्रबाहु भद्रबाहु : गुप्तगुप्ति : चन्द्रगुप्ति तृतीय भद्रबाहु श्वेताम्बर-परम्परा में भद्रबाहु : प्रथम द्वितीय भद्रबाहु श्राचार्य भद्रबाहु : कुछ ऐतिहासिक तथ्य तित्थोगालीपइन्ना दुःषमाकालश्री श्रमरणसघस्तव की काल-गणना भ्रान्ति का एक कारण विद्वानों द्वारा ऊहापोह सारांश दो दृष्टिकोण आचारांग : अचेलकता : निर्वस्त्रता लज्जा - निवृत्ति हेतु कटिबन्ध का स्वीकार अभिप्रेत एक शाटक : वस्त्र का प्रसंग दो वस्त्रों का प्रसंग तीन वस्त्रों का प्रसंग वस्त्रषणा उत्तराध्ययन में अचेलक : सचेलक तात्पर्य पार्श्व - परम्परा : महावीर-परम्परा केशी और गौतम का मिलन For Private & Personal Use Only विषयानुक्रम ५२७ ५२८ ५२८ ५३२ ५३३ ५३४ ५३४ ५३४ ५३५ ५३६ ५३६ ५३७ ५३७ ५३७ ५३८ ५३९ ५३९ ५४० ५४० ५४१ ५४२ ५४३ ५४३ ५४३ ૫૪૪ ५४५ ૫૪૫ ५४६ ५४७ ५४७ www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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