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________________ ४२ विषयानुक्रम ५७८ ५७९ ५८७ शाकटायन रचित स्त्री-निर्वाण-केवलि-भुक्ति-प्रकरण शाकटायन के ग्रन्थ की विशेषता वादी देवसूरि एवं कुमुदचन्द्र का शास्त्रार्थ कुछ महत्वपूर्ण पहल श्रु तकेवली : देशीयाचार्य उमास्वाति का सम्प्रदाय पं० सुखलालजी के विचार विमर्श अपनी-अपनी ओर खिचाव सैद्धान्तिक : विध : दो और उपाधियाँ सारांश उपसंहार आगम-वाङमय : विच्छेद : कुछ तथ्य श्वेताम्बरों द्वारा भी स्वीकार अभिप्राय आगम : सम्पूर्ण : उपलब्ध तिलोयपण्णत्ति : एक विशेष संकेत दिगम्वर-परम्परा में अंग-प्रविष्ट, अग-बाह्य धवलाकार का विवेचन अंग-पण्णत्ति के अनुसार परिमारण सारांश षटखण्डागम : महत्व ग्रन्थ का नाम एक अविस्मरणीय घटना आचार्य धरसेन का स्वप्न प्राचार्य का चिन्तन परीक्षा : सफलता परितुष्ट गुरु द्वारा विद्या-दान स्नातकों का प्रस्थान : संभावनाएं इन्द्रनन्दि और श्रीधर का संकेत a ६०१ ६०२ ६०३ ६०३ ६०७ ग ६०८ ६०९ ६१० ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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