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________________ ३७२] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड:२ छठे में दो, सात में सोलह, आठवे में तीस, नौवें में बीस, दशवें में पन्द्रह, ग्यारह में बारह, बारहवें में तेरह, तेरहवे में तीस तथा चवदह पूर्व में पच्चीस वस्तुए हैं। इस प्रकार कुल १०+१++१+१२+२+१६+३०+२०+१५+१२+१३+३०+२५-२२५ दो सौ पच्चीस वस्तुए हैं। विस्तृत विश्लेषण का यहां अवकाश नहीं है; अतः प्रसंगोपात्ततया पूर्व बाङमय का संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत किया गया है। आर्य जम्बू के बाद श्रुत-परम्परा आर्य प्रभव एक दुर्दम तथा कुशल तस्कर के रूप में प्रभव का आयं जम्बू से सम्पर्क हुमा । बार्य जम्बू के तितिक्षामय उपदेश सुन, उनका संयमोन्मुख जीवन देख प्रभव का मन इतना बदला कि आयं जम्बू का पदानुसरण करते हुए उसने भो यात्रज्जीवन संयम-पथ पर चलते रहने का दृढ़ संकल्प कर लिया। प्रभव का तस्कर-रूप श्रामण्य में परिवर्तित हो गया। अपनी जिज्ञासा व तितिक्षामय उज्ज्वल वृति तथा संयमानुप्राणित सात्विक चर्या से वह इतना आगे बढ़ा कि जम्बू के अनन्तर भगवान् महावीर के धर्म-संघ का समग्र उत्तरदायित्व उसी के सबल कन्धों पर माया । आयं प्रभव आर्य जम्बू के उत्तराधिकारी हुए। कल्पसूत्र में उनका केवल इतना सा परिचय प्राप्त होता है : "काश्यपगोत्रीय स्थविर आयं जम्बू के अन्तेवासी कात्यायमगोत्रीय स्थविर आय प्रभव थे।"1 बायं जम्बू से समस्त श्रुत-परम्परा आर्य प्रभव के माध्यम से यथावत् रूप में गतिशील रही। वे चतुर्दश पूर्वधारी, श्रुत-केवली थे। आर्य प्रभव का आचार्य-काल आर्य जम्बू के उत्तराधिकारी के रूप में उनका कार्य-काल ग्यारह वर्ष का माना जाता है। श्वेताम्बर-परम्परा के अनुसार भगवान् महावीर के निर्वाण के ७५ वर्ष पश्चात् वे स्वगंगामी हुए । यही समय हिमवत् थेरावली में उल्लिखित है। १. थेरस्स णं अज्ज जम्बू नामस्स कासवगोत्तस्स अज्ज पभवे थेरे अंतेवासी कच्चायणमगोते .. । २. पुणो पाडलीपुरे ११, १०, १३, २५, २५, ६, ६, ४, ५५ नवनंद एवं वर्ष १५५ रज्जे जम्बू शेषवर्षाणि ४, प्रभव ११, शय्यम्भव २३, यशोभद्र ५०, सम्भूतिविजय ८, भद्रबाहु १४, स्थूलभद्र ४५ (१५५) एवं वोर-निर्वाण २१५। . --श्री धर्मघोषसूरि कृत दुःषमाकालश्रीश्रमण संघ स्तोत्रम् ३. मुनि कल्याणविजयजी के अनुसार आचार्य हिमवान् एक प्रसिद्ध स्थविर थे। प्रसिद्ध अनुयोग-प्रवर्तक स्कन्दिलाचार्य और नागार्जुन वाचक का सत्ता-समय ही हिमवान् का सत्ता-समय था, इसमें कोई सन्देह नहीं। क्योंकि देवर्द्धिगणी की नन्दी थेरावली में ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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