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________________ ३७० ; आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : २ १०. विद्यानुप्रवाद पूर्व - अनेक अतिशय - चमत्कार-युक्त विद्याओं का, उनके अनुरूप साधनों का तथा सिद्धियों का वर्णन है । पद-परिमाण एक कोड़ दस लाख है । ११. अवन्ध्य पूर्व वन्ध्य शब्द का अर्थ निष्फल होता है । निष्फल न होना अवन्ध्य है । इसमें निष्फल न जाने वाले शुभ फलात्मक ज्ञान, तप, संयम आदि का तथा अशुभ फलात्मक प्रमाद आदि का निरूपण है । पद-प्रमाण छब्बीस करोड़ है | १२. प्राणायुप्रवाद पूर्व-प्राण अर्थात् पांच इन्द्रिय, मानस आदि तीन बल, उछूवासनिःश्वास तथा आयु का भेद प्रमेद सहित विश्लेषण है । पद - परिमाण एक करोड़ छप्पन लाख है । १३. क्रिया-प्रवाद पूर्व - कायिक आदि क्रियाओं का संयमात्मक क्रियाओं का तथा स्वच्छन्द क्रियाओं का विशाल- विपुल विवेचन है । पदपरिमाण नौ करोड़ है । १४. लोक बिन्दुसार पूर्व - लोक में या श्रुत-लोक में अक्षरा के ऊपर लगे बिन्दु की तरह जो सर्वोत्तम तथा सर्वाक्षर सन्निपात लब्धि है, तुक है, उस ज्ञान का वर्णन है । पद-परिमाण साढ़े बारह करोड़ है | चूलिकाएं 2 चूलिकाएं पूर्वों का पूरक साहित्य है । इन्हें परिक्रमं सूत्र, पूर्व गत तथा अनुयोग (दृष्टिवाद के भेदों) में उक्त और अनुक्त अर्थ को संग्राहिका ग्रन्थ-पद्धतियां " कहा गया है | दृष्टिवाद के इन भेदों में जिन-जिन विषयों का निरूपण हुआ है, उन उन विषयों में विवेचित महत्वपूर्ण अर्थों - तथ्यों तथा कतिपय अविवेचित अर्थों - प्रसंगों का इन चूलिकाओं में विवेचन किया गया है । इन चूलिकाओं का पूर्व वाङमय में विशेष महत्व है । ये चूलिकाएं श्रुत रूपी पर्वत पर चोटियों की तरह सुशोभित हैं । १. लोके जगति श्रुत-लोके वा अक्षरस्योपरि बिन्दुरिव सारं सर्वोत्तमं सर्वाक्षरसन्निपातलब्धि हेतुत्वात् लोक बिन्दुसारम् । — अभिधान राजेन्द्र, चतुर्थ भाग, पृ० २५१५ २. यथा मेरो चुलाः, तत्र चूला हव दृष्टिवादे परिकर्मसूत्रपूर्वानुयोगोतामुक्तार्थसंग्रहपरा - वही, पृ० २५१५ गन्यपदयतः । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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