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भाषा और साहित्य ] आष ( अद्ध मागधी) प्राकृत और मागम वाङमय [३६९
अग्र का अर्थ - परिमाण और अयन का अर्थ गमन-परिच्छेद या विशदीकरण है। अर्थात् इस पूर्व में सब द्रव्यों, सब पर्यायों और सब जीवों के परिमाण का वर्णन है।
पद-परिमाण छियानवे लाख है। ३. वीर्यप्रवाद पूर्व-सकर्म और अकर्म जीवों के छोर्य का विवेचन है। पद-परिमाण
सत्तर लाख है। ४. मस्ति-नास्ति-प्रवाद पूर्व-लोक में धर्मास्तिकाय आदि जो हैं और खर-धिषणादि
जो नहीं हैं, उनका इसमें विवेचन है अथवा सभी वस्तुए स्वरूप की अपेक्षा से हैं तथा पर-रूप की अपेक्षा से नहीं
हैं, इस सम्बन्ध में विवेचन है। पद-परिणाम साठ लाख है। ५. ज्ञान-प्रवाद पूर्व-मति आदि पांच प्रकार के ज्ञान का विस्तारपूर्वक विश्लेषण है।
पद-परिमाण एक कम एक करोड़ है। ६. सत्य-प्रवाद पूर्व-सत्य का अर्थ संयम या वचन है । उनका विस्तारपूर्वक सूक्ष्मता
से इसमें विवेचन है । पद-परिमाण छः अधिक एक करोड़ है। ७. आत्म-प्रवाव पूर्व-आत्मा या जीव का नय-भेद से अनेक प्रकार से वर्णन है।
पद-परिमाण-छब्बीस करोड़ है। ८. फर्म-प्रवाद पूर्व-ज्ञानावरणीय आदि आठ प्रकार के कर्मों का प्रकृति, स्थिति,
अनुभाग, प्रदेश आदि भेदों की दृष्टि से विस्तृत वर्णन किया गया
है। पद-परिमाण एक करोड़ छियासी हजार है। ६. प्रत्याख्यान पूर्व-भेद-प्रभेद सहित प्रत्याख्यान-त्याग का विवेचन है । पद-परिमाण
चौरासी लाख है। १. अन परिमाणं तस्य अयनं गमनं परिच्छेद इत्यर्थः। तस्मै हितमग्रायणीयम्, सर्वव्यादि
परिमाणपरिच्छेदकारि - इति भावार्थः तथाहि तत्र सर्वदुव्याणां सर्वपर्यायाणां सर्वजीवविशेषाणां च परिमाणमुपवर्ण्यते ।
–अभिधान राजेन्द्र, चतुर्थ भाग, पृ० २५१५ २. अन्तरंग शक्ति, सामर्थ्य, पराक्रम । ३. यद् वस्तु लोकेऽस्ति धर्मास्तिकायाऽदि यच्च नास्ति खरभंगादि तत्प्रववतीत्य स्तिनास्ति प्रवादम् । अथवा सर्व वस्तु स्वरूपेणास्ति, पररूपेण नास्तीति अस्तिनास्तिप्रवावम् ।
-अभिधान राजेन्द्र, चतुर्थ भाग, पृ० २५१५ ४. सत्यं संयमो वचनं वा तत्सत्यसंयम वचनं वा प्रकर्षण सप्रपञ्च ववतीति सत्यप्रवादम् ।
-अभिधान राजेन्द्र, चतुर्थ भाग, पृ० २५१५
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