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३६८ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : २ बांधे जा सकें । अर्थात् पूर्व ज्ञान समग्रतया शब्द का विषय नहीं है । वह लब्धिरूपआत्मक्षमता नुस्यूत है । पर, इतना सम्भाव्य मानना ही होगा कि जितना भी अंश रहा हो, शब्द-रूप में उसको अवतारणा अवश्य हुई । तब प्रश्न उपस्थित होता है, किस भाषा में ऐसा किया गया?
साधारणतया यह मान्यता है कि पूर्व संस्कृत बद्ध थे। कुछ लोगों का इस सम्बन्ध में अन्यथा मत भी है। वे पूर्वो के साथ किसी भी भाषा को नहीं जोड़ना चाहते । लब्रिारूप होने से जिस किसी भाषा मे उनकी अभिध्यंजना सम्भाध्य है। सिद्धान्ततः ऐसा भी सम्भावित हो सकता है, पर चतुर्दश पूर्वधरों की, दश पूर्वधरों की, क्रमशः हीयमान पूर्वधरों को एक परम्परा रही है। उन पूर्वधरों द्वारा अधिगत पूर्व-ज्ञान, जितना भी धाग-विषयता में संचीर्ण हुआ, वहां किसी-न-किसी भाषा का अवलम्बन अवश्य ही रहा होगा। यदि संस्कृत में वैसा हुआ, तो स्वभावतः एक प्रश्न उपस्थित होता है कि जैन मान्यता के अनुसार प्राकृत (अद्धमागधी) आदि-भाषा है। तीर्थकर अद्धमागधी में धर्म-देशना देते हैं, जो श्रोतृ-समुदाय की अपनी-अपनी भाषा में परिणत हो जाती है। देवता इसी भाषा में बोलते हैं। अर्थात् वैदिक परम्परा में विश्वास रखने वालों के अनुसार छन्दस् (वैदिक संस्कृत) का जो महत्व है, जैन धर्म में आस्था रखने वालों के लिए आषत्व के सन्दर्भ में प्राकृत का वही महत्व है।
भारत में प्राकृत-बोलियां अत्यन्त प्राचीन काल से लोक-भाषा के रूप में व्यवहृत रही हैं । छन्दस् सम्भवतः उन्हीं बोलियों में से किसी एक पर आधृत शिष्ट रूप है। लौकिक संस्कृत का काल उससे पश्चाद्धर्ती है । इस स्थिति में पूर्व श्रुत को भाषात्मक दृष्टि से संस्कृत के साथ जोड़ना कहाँ तक सगत है ? कहीं परवर्ती काल में ऐसा तो नहीं हुआ, जब संस्कृत का साहित्यिक भाषा के रूप में सर्वातिशायी गौरव पुनः प्रतिष्ठापन्न हुषा, तब जैन विद्वानों के मन में भी वसा आकर्षण जगा हो कि वे भी अपने आदि-वाङमय का उसके साथ लगाव सिद्ध करें, जिससे उसका महात्म्य बढ़े । निश्चयात्मक रूप में कुछ नहीं कहा जा सकता, पर. सहसा यह मान लेना समाधायक नहीं प्रतीत होता कि पूर्व श्रुत संस्कृत-निबद्ध रहा।
पर्वगत : एक परिचय
- पूर्व गत्त के अन्तर्गत विपुल साहित्य है। उसके अन्तर्वर्ती चौदह पूर्व हैं : १. उत्पाद पूर्व-समग्र द्रव्यों और पर्यायों के उत्पाद या उत्पत्ति को अधिकृत कर
विश्लेषण किया गया है । इसका पद-परिमाण एक करोड़ है। २. अनायणीय पूर्व-अन तथा अयन शब्दों के मेल से अग्रायणीय शब्द निष्पन्न हआ है।
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