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________________ माषा और साहित्य ) आष (रुद्ध मागधी) प्राकृत और आगम वाङमय [ ३५३ लेखक ने यहां वीर-निर्वाण के ६२ वें वर्ष में ४४ वर्ष की कैवल्यावस्था के अनन्तर जम्बू के निर्वाण प्राप्त करने का जो उल्लेख किया है, वह चिन्त्य प्रतीत होता है । ६२ वर्ष की संख्या तो तिलोयपप्णत्ती से मिलती है, पर, जम्बू का ४४ वर्ष का जो केवलिकाल बताया है, वह कठिनाई उत्पन्न करता है। इसके अनुसार गौतम और सुधर्मा, दोनों के वेवलि-काल के १८ वर्ष बने रहते हैं, जिनकी संगति किसी भी परम्परा से नहीं बैठती ! जम्ब के अनन्तर कतिपय विच्छेद ___ जम्बू अन्तिम केवली थे। प्रायः सभी जैन परम्पराए इस सम्बन्ध में एकमत हैं । जैन मान्यता के अनुसार जम्बू के पश्चात् १. मनःपर्यव ज्ञान, २. परम अवधि ज्ञान, ३. पुलाक लब्धि, ४. आहारक शरीर, ५. उपशम श्रेणी, ६. क्षपक श्रेणी, ७. जिनकल्प साधना, ८. परिहार विशुद्धि चारित्र, ६. सूक्ष्म सम्पराय चारित्र, १०. यथाख्यात चारित्र, ११. केवल ज्ञान, १२. मोक्ष-गमन का विच्छेद हो गया । इस विच्छेद क्रम का अन्यान्य हेतुओं के साथ काल प्रभाव भी एक कारण हो सकता है । तिलोयपण्णत्ती का एक विवेच्य प्रसंग तिलोयपण्णत्ती में भगवान् महावीर से आर्य जम्बू तक का जो केवलि-क्रम वर्णित हुआ है, वहां अन्त में उल्लेख है कि जम्बू स्वामो द्वारा सिद्धि प्राप्त कर लिये जाने पर अनुबद्ध केवली' नहीं हुए। साधारणतया इसका यही अर्थ लिया जाता है कि जम्बू के पश्चात् केवल-ज्ञान की परम्परा गतिशील नहीं रही। जम्बू के अनन्तर विच्छिन्न होने वाले दश बोलों में केवल-ज्ञान का विच्छेद है ही। पर, तिलोयपण्णत्ती में एक प्रसंग और आया है, जिसमें अन्तिम केवलज्ञानी, अन्तिम चारण ऋषि, अन्तिम प्रज्ञा-श्रमण, अन्तिम अवधि ज्ञानी तथा आहेती दीक्षा से दीक्षित अन्तिम मुकुटधारी सम्राट् आदि का वर्णन है। वहां कहा गया है १. मण-परमोहि-पुलाए आहारग-खवग-उवसमे कप्पे । संजमतिय केवलि सिझणा य जंबूम्मि वोच्छिण्णा ॥ --विशेषावश्यक भाष्य, गाथा २५९३ २. जादो सिद्धो वीरो तदिवसे गोदमो परमणाणी । जादो तरिस सिद्दे सुधम्मसामी तदो जादो।। सम्मि कदकम्मणा से जंबू सामि त्ति केवलो जादो । तत्थ वि सिद्धिपवण्णे केवलिणो गस्थि अणुबद्धा ॥ -तिलोयपण्णत्ती, १४७६-७७ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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