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________________ ३५२] . मागम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन पुष्पदन्त (दशम शती ई०); दिगम्बर-परम्परा के इन सभी विद्वानों ने पीर निर्माण के १२ वर्ष पश्चात् गौतम, उसके १२ वर्ष पश्चात् सुधर्मा तथा उसके ४० वर्ष पश्चात् जम्बू का मोक्ष गमन मान्य किया है। इस प्रकार १२+१२+४०=वीर-निर्वाण से जम्बू-निर्वाण तक ६४ वर्ष होते हैं। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार भी गौतम, सुधर्मा और जम्बू के कैवल्य काल की कुल संख्या ६४ वर्ष होती है । पर, वह इस प्रकार है-गौतम का कैवल्य काल १२ वर्ष, सुधर्मा का कंवल्य काल ८ वर्ष तथा जम्बु का कैवल्य काल ४४ वर्ष=कुल ६४ वर्ष । तिलोयपण्णत्तीकार यतिवृषभ यद्यपि दिगम्बर परम्परा से सम्बद्ध थे, पर, प्रस्तुत विषय में उनकी काल- गणना भिन्न है। उन्होंने गौतम, सुधर्मा और जम्बू का केलि-काल ६२ वर्ष का बताया है। अप्रभ्रश जंबूसामि चरिउ के लेखक वीर कवि (११वीं शती) ने जम्बू के कैवल्य-काल के सम्बद्ध में एक नई कल्पना की है। उनके अनुसार जम्बू स्वामी दीक्षित होने के अठारह वर्ष बाद माघ शुक्ल सप्तमी को प्रातः आर्य सुधर्मा मोक्षगामी हुए। सुधर्मा के निर्वाण के अठारह वर्ष बाद जम्बू का मोक्ष हुआ। हिमवत् थैरावली में वीर निर्वाणाब्द ७० में जम्बू का निर्वाण सूचित किया है। इसके अनुसार गौतम, सुधर्मा और जम्बू का सर्वज्ञावस्या का समय ७० वर्ष का होता है। कुछ और ब्रज के धर्म-सम्प्रदायों का इतिहास के प्रसंग में आर्य जम्बू के सम्बन्ध में चर्चा की है। वहां लिखा है :......."उन्होंने १६ वर्ष की किशोरावस्था में ही अपने विवाह के तत्काल पश्चात् महावीरजी के पट्ट शिष्य सुधर्मा स्वामी से प्रव्रज्या ली थी और जीधन-पर्यन्त ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया था। प्रवज्या लेने के अनन्तर २० वर्ष तक मुनि-वृत्ति धारण करने पर वे केवल-ज्ञानी हुए थे। बाद में ४४ वर्ष तक केवल-ज्ञानी रहने के उपरान्त ८० वर्ष की आयु में उन्होंने महावीर-निर्वाण के १२ वे वर्ष' में मोक्ष-लाभ किया था। उनका देहावसान-काल वि०पू० सं० ४०८ माना जाता है। उन्होंने मथुरा के "चौरासी" नामक स्थान में तपस्या कर सिद्ध-पद प्राप्त किया था और वहां पर ही उनका निर्वाण हुमा था। वे जैन-धर्म के अन्तिम केवल-ज्ञानी थे। १. वासट्टो वासाणि गोवमपटुवीण गाणवंताणं । धम्मपयट्टणकाले परिमाणं पिंडस्वेण ॥ -तिकोयपणती, १४७८ २. ब्रज का सांस्कृतिक इतिहास, भाग २, पृ० ५५ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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