SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाषा और साहित्य ] मार्ष (अद्धमागधी) प्राकृत और मागम वाङमय [३५१ केवल-शान : ई० पू० ५०७ निर्वाण : ई० पू० ४६३ । सम्पूर्ण आयु ८० वर्ष । एक और कल्पना प्रायः अधिकांश जैन लेखकों ने इस प्रकार उल्लेख किया है कि मगध नरेश सम्राट श्रेणिक ने भगवान महावीर से या गणधर गौतम से जम्बू के जन्म के सम्बन्ध में प्रश्न किये । इससे यह अनुमान होना स्वाभाविक है कि जम्बू का जन्म सम्राट् श्रेणिक के जोवन-काल में या उसके देहावसान से कुछ पूर्व या उसके आस-पास होना चाहिए। बुद्ध का निर्वाण ई० पू० ५४४ में हुआ। उससे आठ वर्ष पूर्व अजातशत्रु मगध के राजसिंहासन पर बैठा । लगभग उसी समय श्रेणिक की मृत्यु का समय ई०पू० ५५२ के आसपास ठहरता है। उपयुक्त विचार के सन्दर्भ में जम्बू का जन्म भी इसी के आस-पास होना चाहिए। यदि ऐसा माना जाए तो स्वोकृत मान्यता में लगभग १० वर्ण का अन्तर आता है। तदनुसार जम्बू की आयु ८० वर्षा की न होकर ६० वर्ष की होती है। वीर कवि का अभिमत ____ जंबूसामि चरिउ के लेखक वीर कवि ( ११वीं शती ) ने तथा उसके अनुसार ब्रह्म जिन दास (वि. १३ वीं शती) तथा राजमल्ल (दि. १७ वीं शती) ने भी यह उल्लेख किया है कि कुमार जम्बू ने मगधराज श्रेणिक के राज्य-काल में दीक्षा ग्रहण की थी। इतना ही नहीं, सम्राट् श्रेणिक ने उसका दीक्षोत्सव बड़े मानन्दोत्साह तथा विशाल समारोहपूर्वक आयोजित किया था। इसके अनुसार जम्बू का जन्म श्रेणिक के देहावसान के समय ई० पू० ५५२ से कम-से-कम पन्द्रह-सोलह वर्ष पूर्व अवश्य होना चाहिए । इस प्रकार जन्म का समय लगभग ई० पू० ५६८-५६६ सम्भावित होता है । इसे मान कर चलें, तो आर्य जम्बू की आयु लगभग १०५ वर्ष होती है। भिन्न-भिन्न पहलुओं को लेते हुए यद्यपि विद्वानों ने कुछ विचार किया है, पर, गवेषणात्मक दृष्टि से इन पर और अधिक विचार किया जाना अपेक्षित है। आशा है, विद्वजन ऐसा करेंगे । आर्य जम्बू का निर्वाण शौरसेनी षटखण्डागम के धवला टीका के रचयिता वीरसेन (आठवीं-मौवीं शती), गोम्मट्सार के कर्ता सिद्धान्त चक्रवर्ती नेमिचन्द्राचार्य ( नौवीं शती), उत्तरपुराण के लेखक गुणधर ( ८६८ ई. से पूर्व ), अपभ्रंश महापुराण ( तिसट्टिमहापुरिसगुणालंकारु ) के प्रणेता १. इनका समय ईसा की आठवीं शती का अन्तिम चरण तथा नौवीं शती का प्रथम चरण माना जाता है। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy