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आi ( अ मागधी प्राकृत और आगम वाङमय
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वचसी आया है, पाठान्तर में उसके स्थान पर वय सी भी आया है, - वचनवान् -- आदय, हितावह और निरवद्य निर्दोष - निष्पाप वचन बोलने वाला होता है । यशस्वी विशेषण का आशय यह है कि उत्कृष्ठ साधक को यद्यपि जा भी यश की कामना नहीं होती, पर उनकी उग्र तपःशीलता, कठोर संयम-चर्या, तितिक्षामय जीवन-पद्धति, ज्ञान और अनुभूति की दिव्यता आदि विशेषताओं के कारण स्वतः उनका यश सर्वत्र प्रस्फुटित होने लगता है । आय सुधर्मा भगवान् महावीर के पट्टधर थे । उत्तमोत्तम गुणों से वे अलंकृत थे; अतः सर्वत्र उनकी ख्याति, यश और प्रशस्ति का प्रसृत होना स्वाभाविक था । इसी अपेक्षा से उनके लिए यशस्वी विशेषण का प्रयोग किया गया है ।
क्रोधादि विजेता
आर्यं सुधर्मा क्रोध, अहंकार, माया, प्रवंचना, इन्द्रिय, निद्रा तथा परिषहों को जीत चुके थे । जीने की आशा या कामना तथा मृत्यु की भीति से वे छूट चुके थे । तप उनके जीवन का प्रधान अंग था । वे गुणों से विभूषित - सुशोभित थे। यहां प्रयुक्त गुण शब्द सयममूलक गुणों के अर्थ में है । इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि तप द्वारा पूर्व सचित कर्मों के निर्जरण तथा संयम या संवर के द्वारा नये कर्मों के बंधन का निरोध करते हुए वे अपने पावन पथ पर गतिशील थे । आर्यं सुधर्मा शास्त्र वर्णित पिण्ड विशुद्ध आदि उत्तर गुण रूप करण, महाव्रत आदि मूल गुण रूप करण में सतत जागरूक थे । वे इन्द्रिय और मन का निग्रह कर चुके थे । जीव, अजीव आदि तत्वों के ज्ञान में उनके निश्चयात्मकता थी अर्थात् उनका तत्व ज्ञान सन्देह - वर्जित था । उनमें स्वभावतः ऋजुता, मृदुता, निरभिमानिता, क्षमाशीलता - सहिष्णुता, गुप्ति - अकुशल मन, वाणी और काय का निवर्तनमन, वचन और देह की अकुशल-अशुभ प्रवृत्तियों से निवृत्ति, निर्लभता आदि उदात्त गुण थे । वे विद्वान थे, मन्त्रवित् थे । ब्रह्मचारी -- ब्रह्म-आत्मा में चरणशोल थे।
भाषा और साहित्य ]
अर्द्धमागधी पाठ जो जिसका अर्थ वचस्वी
वेद - प्रधान
वेद का सामान्य अर्थ ज्ञान है । जिससे जीव, अजीव आदि का स्वरूप जाना जाता है, उसे वेद कहा जा सकता है। यहां वेद का आशय जैन आगम वाङमय से है । प्रस्तुत प्रसंग में वेद का दूसरा अर्थ स्व-सिद्धान्तों और पर-सिद्धान्तों का ज्ञान है । आये सुधर्मा वेद-प्रधान अर्थात् आगम- प्रधान, नय प्रधान, नियम-प्रधान तथा सत्य - प्रधान थे । वे शौचशुचिता - आन्तरिक शुद्धि से विशेषतः युक्त थे । वे ज्ञान, दर्शन और चारित्र से भूषितविराजित थे ।
उदार : घोर
आय सुधर्मा उदार थे।
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क्रोध आदि को जीत लेने के कारण उनके जीवन में उदारता
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