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________________ भाषा और साहित्य ] आर्ष ( अर्द्धमागधी) प्राकृत और आगम वाङमय [३२९ जैसी एक सत्यान्वेषक के मन पर होनी चाहिए। उन के पांचसो अन्तेवासी, जो उनके सान्निध्य में रहते हुए विद्यार्जन करते थे, उन्होंने ऐसा नहीं सोचा, यह उनके आचार्य की पराजय है । क्यों नहीं, वे इसका प्रतिशोध ले ? जहां अपने द्वारा स्वीकृत पक्ष का ऐका न्तिक आग्रह होता है, वहां मानव का चिन्तन मुक्त नहीं होता, वह प्रतिबद्ध बना रहता है। पर, जहां सत्य का आग्रह होता है, वहां यह सब नहीं होता। वहीं मान-अपमान, सत्कारतिरस्कार, आदर-अनादर की तुच्छ भूमिका अपगत हो जाती है। यह तो नितान्त व्यावहारिक किंवा स्थूल दृष्टि है, प्रबुद्ध मन इसमें कैसे उलझेगा ? परिणाम यह हुआ, आर्य सुधर्मा के सबके सब अन्तेवासियों ने अपने आचार्य के साथ श्रामण्य स्वीकार कर लिया। आर्य सुधर्मा का छद्मस्थ-काल : ज्ञानाराधना आर्य सुधर्मा विद्वान थे। उन्होंने अपनी शास्त्रीय विद्वता और प्रजा को अध्यात्म से जोड़ दिया। भगवान महावीर जैसे सर्वज्ञता, सवंद्रष्टा, मार्गदर्शक उन्हें मिले । साधक को और क्या चाहिए। उन्होंने भगवान् महावीर के सान्निध्य में ज्ञानाराधना और चारित्र्याराधना में अपने को लगा दिया । बहुत शीघ्र ही उन्हे भगवान् महावीर से द्वादशांग रूप जान का प्रसाद प्राप्त हो गया। भगवान् के वे पांचवें गणधर बने । आत्म-साधना में संलग्न रहते हुए वे अपने अनुशासन और देख-रेख में स्थित गण के श्रमणों को अध्यात्म की सुधा पिलाते रहें तथा जन-जन को धर्म की ओर प्रेरित करते रहे । भगवान महावीर का सानिध्य आर्य सुधर्मा को परम गुरु भगवान् महावीर का तीस वर्ष तक साक्षात् सान्निध्य प्राप्त रहा, जिस बीच उन्होंने अपने आराध्य से बहुत कुछ पाया, पाते ही गये । भगवान् महावीर ने अपनी साधना का चरम साध्य साध लिया। साधक, साधना और सिद्धि का तादात्म्य हो गया, विभेद मिट गया। अत्यन्त गौरवशील दिन वह था, जब अध्यात्म के अनन्त भालोक का कभी न बुझने वाला दीप जला, जिसकी लौकिक स्मृति आज का दीपावली पर्व है, जिस दिन टिमटिमाते दीपकों का प्रकाश उसी अपरिसीम, अप्रतिम एवं अनन्त प्रकाश की ओर इगित करता है, जिसको प्राप्ति प्रत्येक साधक के जीवन का उस्कृष्टतम किंवा पवित्रतम ध्येय है। संघ-नायक के रूप में ____ भगवान् महावीर का निर्वाण हो जाने पर आर्य सुधर्मा उनके उत्तराधिकारी हुए। समग्र श्रमण संघ की व्यवस्था, निर्देशन, संरक्षण, संवर्धन आदि का उत्तरदायित्व उनके सबल कन्धों पर आया। भगवान महावीर के ग्यारह गणधों में से नौ गणधर उनके जीवन ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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