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________________ ३१६ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खड।२ स्वाभाविक है; अत: भिन्न-भिन्न गणधरों की वाचनाए शाब्दिक दृष्टि से सदृश नहीं होती। तत्वतः उनमें ऐक्य होता है। गणधर की तीर्थंकर-सापेक्षता गणधर का जो सीधा अर्थ गण का धारक, अधिपति, पावनादाता आदि है, वह एक विशेष परम्परा को लिये हुए है। इस शब्द का व्यवहार तोर्थकर-सापेक्ष है। तीर्थकरों की विद्यमानता में उनके प्रमुख शिष्य गणधर संज्ञा से अभिहित होते हैं। तीर्थकरों के अनन्तर या दो तीर्थंकरों के समय गणधर नहीं होते। इस प्रकार का गणधर का एक पारिभाषिक अर्थ में प्रयोग है। मात्र अपने शब्दानुगामी साधारण अर्थ में गणधर शब्द प्रयोज्य नहीं है। गणधर का एक विशेष अर्थ स्थानांग सूत्र की वृत्ति में गणधर की एक विशेष व्याख्या की गयी है। वहां उसे साध्वियों का प्रतिजागरक' कहा है। इसका अभिप्राय यह है कि गणधर का एक यह कार्य भी होता था कि यह साध्वीवृन्द को प्रतिजागृत रखने-उन्हें संयम-जीवितम्म में उत्तरोत्तर गतिशील रखने में प्रेरक रहे, उनका मार्गदर्शन करे। इस व्याख्या से यह प्रतीत होता है कि जैन संघ में साध्धियों की प्रगति, अध्यात्म-विकास एवं सुखपूर्वक संयमोत्तय जोवन-यापन की ओर सजगता बरती जाती रही है, जो जेन आम्नाय की उबुद्ध चेतना का परिचायक है। ग्यारह गणधर : नौ गण भगवान महावीर के संघ में गणों और गणधरों की संख्या में जो दो का अन्तर था, उसका कारण यह है कि पहले से सातवे तक के गणधर एक-एक गण की व्यवस्था देखते थे, पृषक्-पृथक् उसे आगम-वाचना देते थे, पर, आगे चाय गणधरों में दो-दो का एक-एक गण था। इसका तात्पर्य यह है कि आठ और नौवे गण में श्र..ण-संख्या कम थी; इसलिए पो-दो गणपरों पर सम्मिलित रूप से एक-एक गण का दायित्व था। तदनुसार अकम्पित और अचलभ्राता के पास आठवें गण का उत्तरदायित्व था तथा मैतार्य और प्रभास के पास नोवें गण का । महावीर की विद्यमानता : नौ गणधरों का निर्वाण कल्पसूत्र में कहा गया है : "भगवान् महापोर के सभी ग्यारहों गणधर द्वादशांग-वेता, १. आर्यिकाप्रतिजागरको वा साधुविशेषः समयप्रसिद्धः । -स्वानागपूत्र वृत्ति, ४. ३. ३२३ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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