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________________ भाषा और साहित्य ] आर्मेइक व खरोष्ठी भारत में लिपि कला का उद्भव और विकास प्रो० बूलर लिपि-विज्ञान के विशिष्ट वेत्ता थे । उन्होंने उस पर बहुत काम किया । खरोष्ठी पर भी उनका महत्वपूर्ण कार्य है । इस सम्बन्ध में उन्होंने जो उपलब्धियां प्रस्तुत कों, वे ममनीय हैं । उनके अनुसार आर्मेइक लिपि खरोष्ठी से पूर्ववर्ती है । उन्होंने बताया कि तक्षशिला में आर्मेइक लिपि में जो शिलालेख प्राप्त हुआ है, उससे सिद्ध होता है कि आर्मेइक लोगों का भारतवासियों से सम्पर्क रहा है । खरोष्ठी लिपि का क्रम दाहिनी और से बाई ओर लिखे जाने का है। ठीक वैसा ही क्रम आर्मेइक लिपि का है। खरोष्ठी लिपि के ग्यारह अक्षरों की रचना और ध्वनि की आर्मेइक लिपि के अक्षरों से तुलना करते हुए बूलर ने बताया है कि वे परस्पर बहुत अधिक मिलते-जुलते हैं । [ ३०७ बूलर ने जो हेतु उपस्थित किये हैं, वे खोजपूर्ण हैं, प्रामाणिक हैं । महान् लिपि-विज्ञानवेत्ता महामहोपाध्याय डा० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा भी इन विचारों से सहमत हैं । युग के प्रमुख लिपि - विज्ञान वेत्ता डिरिंजय ने भी इसी मत को प्रश्रय दिया है । इस ब्राह्मी का प्रभाव खोष्ठी आमँइक, उससे निःसृत अरबी आदि की तरह दाहिनी ओर से बाई ओर लिखी जाती थी { उसका पश्चिमोत्तर भारत के लोगों में प्रचलन हुआ । भारत की राष्ट्रीय लिपि ब्राह्मी थी । खरोष्ठी पर ब्राह्मी का प्रभाव पड़ना अनिवार्य था । फलतः खरोष्ठी ब्राह्मो की तरह बाईं ओर से दाईं ओर लिखी जाने लगी । डिरिंजर आदि विद्वानों ने कुछ और तथ्यों का भी अनुमान किया है, जो ब्राह्मी के साहवयं से खरोष्ठी में आये । मूलतः खरोष्ठी में स्वर नहीं थे । ह्रस्व-स्वरांकन हेतु इसमें अक्षरों के साथ रेखा, वृत्त आदि लगाने का उपक्रम चला, जो ब्राह्मी का प्रभाव कहा जा सकता है । इसी प्रकार भ घ आदि कुछ वर्ण जो आर्मेइक में मूलत: नहीं थे, वे खरोष्ठी में भी नहीं थे । ब्राह्मी के आधार पर वे खरोष्ठी में बढ़ाये गये । Jain Education International 2010_05 एक परिपूर्ण लिपि खरोष्ठी पर ब्राह्मी के प्रभाव से यह प्रकट है कि खरोष्ठी लिपि - विज्ञान की दृष्टि से एक परिपूर्ण लिपि नहीं है । लिपि द्योतक है, अक्षरात्मक या वर्णात्मक ध्वनि द्योत्य । परिपूर्ण लिपि में कोई ध्वनि अद्योत्य नहीं होती । खरोष्ठी में वैसा है । ऊपर खरोष्ठी की जिन कमियों की ओर संकेत किया गया है, उनके अतिरिक्त उसमें और भी कमियां हैं । जेसे, उसमें दोघं स्वरा बिलकुल नहीं हैं । संयुक्त व्यंजनों के द्योतक अक्षर नगण्य से हैं; प्रायः नहीं हैं, ऐसा कहा जाना चाहिए । इसके वर्णों की मूलतः कुल संख्या ३७ है 1 · For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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