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माषा और साहित्य ] भारत में लिपि-कला का उद्भव और विकास [२६७ महामहोपाध्याय डा० ओझा
महामहोपाध्याय डा० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा लिपि-विद्या के प्रसिद्ध विद्वान् थे। उन्होंने भारत की प्राचीन लिपियों पर महत्वपूर्ण गवेषणा-कार्य किया। इस सम्बन्ध में प्राचीन लिपि-माला उनकी बहुत प्रसिद्ध पुस्तक है। ब्राह्मी-लिपि के सम्बन्ध में डा० ओझा लिखते हैं : "जितने प्रमाण मिले हैं, चाहे प्राचीन शिलालेखों के अक्षयों की शैलो और चाहे साहित्य के उल्लेख, सभी यह दिखाते हैं कि लेखन-कला अपनी प्रौढ़ावस्था में थी। उसके आरम्भिक विकास का पता नहीं चलता। ऐसी दशा में यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि ब्राह्मी-लिपि का आविष्कार कैसे हुआ और इस परिपक्व रूप में वह किन-किन परिवर्तनों के बाद पहुंची ।""निश्चय के साथ इतना ही कहा जा सकता है कि इस विषय के प्रमाण जहां तक मिलते हैं, वहां तक ब्राह्मो-लिपि अपनी प्रौढ़ अवस्था में और पूर्ण व्यवहार में आती हुई मिलती है और उसका किसी बाहरी स्रोत और प्रभाव से निकलना सिद्ध नहीं होता।"
बहुत अन्वेषण-अनशीलन के पश्चात् डा. ओझा ने जो निष्कर्ष निकाला, उसके अनुसार ब्राह्मो-लिपि और फिनिशियन लिपि का केवल एक ही अक्षर ( ब्राह्मी का ज और फिनिशियन का गिमेल ) मिलता है। इतने से आधार पर किन्हीं दो लिपियों की परस्पर सम्बद्धता या किसी एक को टूसरी का उद्गम मानना कैसे सगत हो सकता है ? आधार बहुत साधारण तथा अत्यल्प और उस पर निर्णय इतना बड़ा, कैसे संगत हो सकता है । डा० ओझा निःसन्देह अपने विषय के अधिकारी विद्वान थे । उन्होंने इस विषय पर अनवरत काम किया। उनके निष्कर्ष उपेक्ष्य नहीं माने जा सकते । उन पर और चिन्तन तथा अनुशीलन किया जाना चाहिए। अशोक के पूर्ववर्ती दो शिलालेख
सम्राट अशोक के ही शिलालेख प्राचीन भारत में व्यवहृत लिपि के प्राचीनतम वृहत् प्रतीक हैं, पर, छोटे-छोटे दो शिलालेख और प्राप्त हुए हैं, जिनमें एक राजस्थान में अजमेरा जिले के अन्तर्गत बदली ( बर्ली ) नामक गांव में है तथा दूसरा नेपाल की तराई में पिप्राधा नामक स्थान में 1 यद्यपि इनमें सामग्री बहुत कम है, पर, जो है, ऐतिहासिक दृष्टि से अशोक के अभिलेखों से भी प्राचीन है ; अत: प्राचीन लिपि के सन्दर्भ में उनके आधार पर कुछ और सोचने का, थोड़ा ही सही, अवकाश मिलता है।
डा० ओझा ने उनके सम्बन्ध में लिखा है : “पहला एक स्तम्भ पर खुदे हुए लेख का १. प्राचीन लिपिमाला
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