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________________ २६ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशोलन [ खण्ड : २ टुकड़ा है, जिसकी पहली पंक्ति में 'वीर (1) य भगव (त) ' और दूसरी में 'चतुरासिति व (स) खुदा है । इस लेख का ८४ वां वर्ष जेनों के अन्तिम तीर्थंकर वीरा ( महावीर ) के निर्वाण संवत् का ८४वर्ष होना चाहिये । यदि यह अनुमान ठीक हो, तो यह लेख ई० पू० ५२७ - ८८ = ४४३ का होगा । इसकी लिपि अशोक के लेखों से पहले की प्रतीत होती है । इसमें 'बोराय' का 'वी' अक्षर है । उक्त 'वी' में जो 'ई' की मात्रा का चिह्न है, वह न तो अशोक के लेखों में और न उनसे पीछे के किसी लेख में मिलता है, अतएव यह चिह्न अशोक से पूर्व की लिपि का होना चाहिए, जिसका व्यवहार अशोक के समय तक मिट गया होगा और उसके स्थान में नया चिह्न व्यवहृत होने लग गया होगा । दूसरे अर्थात् पिप्रावा के लेख से प्रकट होता है कि बुद्ध की अस्थि शाक्य जाति के लोगों ने मिल कर उस स्तूप में स्थापित की थी । इस लेख को बूलर ने अशोक के समय से पहले का माना है । वास्तव में यह बुद्ध के निर्वाण-काल अर्थात् ई० पू० ४५७ के कुछ ही पीछे का होना चाहिये इन शिलालेखों से प्रकट है कि ई० पू० की पांचवीं शताब्दी में लिखने का प्रचार इस देश में कोई नई बात नहीं थी ।"" । डा० ओझा ने जो विचार व्यक्त किये हैं, उनके सन्दर्भ में सिन्धु घाटी में मोहन-जो-दड़ो और हड़प्पा के उत्खनन में निकली चित्र-लिपि की ओर पुनः हमारा ध्यान जाता है । यद्यपि उस चित्र-लिपि का अब तक इतना विश्लेषण नहीं हो सका है, जिस पर कहा जा सके कि ब्राह्मी लिपि उसी का विकसित रूप है, पर, इस प्रकार की सम्भावना ही है । तो बलवत्तर होती उपसंहार एक प्रश्न-चिह्न ? विद्वानों द्वारा किये गए वैचारिक ऊहापोह और मत-स्थापन के वैविध्य के सन्दर्भ में प्रस्तुत विषय पर निश्चित भाषा में कुछ कहा जा सके, यह सम्भव नहीं है । पर कुछ पहलू हैं, जिन पर कुछ विचार करना है, जिनमें एक यह है, जो एक प्रश्न-चिह्न के रूप में विद्यमान है | शिलालेखों के रूप में प्राप्त मिले हैं, वे लिपि की दृष्टि से ब्राह्मी लिपि के स्पष्ट प्राचीनतम उदाहरण अशोक के हैं । बड़ली (बर्ली) और पिप्राबा के जो छोटे-छोटे अभिलेख अधिक और स्पष्ट तथ्यपरक नहीं हैं; अतः इस प्रकार कहना यथार्थ से दूर नहीं होगा कि अशोक के शिलालेखों से पूर्ववर्ती कोई ठोस - चक्षुगंय आधार नहीं है, जो ब्राह्मी लिपि १. प्राचीन लिपिमाला, पृ० २, ३ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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