SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषयानुक्रम महावीर की विद्यमानता : नौ गरणधरों का निर्वारण द्वादश अंगों के रूप में श्रुत-संकलना आर्य सुधर्मा : श्रुत-संवाहक परम्परा दिगम्बर- मान्यता Jain Education International 2010_05 गौतम पट्टधर क्यों नहीं ? श्वेताम्बर - परम्परा : एक समाधान दिगम्बर- परम्परा का प्राधार श्री धर्मघोष सूरि का कथन युगप्रधान : सर्वातिशायी प्रतिष्ठापन्नता युगप्रधान की विशेषताए युगप्रधान का विरुद कब मिलता ? धर्मघोष का उल्लेख : ऊहापोह आर्य सुधर्मा : द्वादशांग एक अन्य परम्परा पट्टानुक्रम में अन्य नाम : भिन्नता आर्य सुधर्मा : एक परिचय विद्वत्ता : वैभव जिज्ञासा : मुमुक्षा का द्वार आर्य सुधर्मा का छद्मस्थ - काल : ज्ञानाराधना भगवान् महावीर का सान्निध्य संघ- नायक के रूप में आर्य सुधर्मा का विराट् व्यक्तित्व आर्य स्थविर जाति सम्पन्न : कुल सम्पन्न विनय - लाघवादि सम्पन्न प्रोजस्वी : तेजस्वी : वर्चस्वी : यशस्वी क्रोधादि विजेता वेद - प्रधान उदार : घोर For Private & Personal Use Only २९ ३१६ ३१७ ३१८ ३१८ ३१९ ३१९ ३१९ ३२० ३२० ३२१ ३२१ ३२२ ३२३ ३२३ ३२४ ३२६ ३२६ ३२८ ३२९ ३२९ ३२९ ३३० ३३० ३३१ ३३२ ३३२ ३३२ ३३३ ३३३ ३३३ www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy