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________________ भाषा और साहित्य ] शिलालेखी - प्राकृत [ २५९ एकवचन के स्मिन् की तरह फ नहीं होता। एतस्मै के लिए एताय व एताये तथा अमुष्मै के लिए इमाय' का प्रयोग हुआ है। लेख में अस्माकम् के लिए हमा' तथा मया के लिए हमियाए का प्रयोग हुआ है। इस आदेश - विधि पर सूक्ष्मता से विचार किया जाना चाहिए। १. एताय ठाय इयं सावणे सावापिते । एतस्मै अर्था इदं श्रावणं श्रावितम् । -ब्रह्मगिरि का प्रथम लघु शिलालेख बहका च एताय अथा......"व्यापता धंममहाभातां । ( बहुकाः च एतस्मै अर्थाय व्यापृताः धर्ममहाभात्रा:........।) चतुर्दश शिलालेख में द्वादश शिलालेख, गिरनार २. एताये अथाये इयं लिपि लिखित......। -धौली, दो कलिंग शिलालेख के अन्तर्गत प्रथम शिलालेख एताये च अठाये......। -जौगढ़, दो कलिंग शिलालेखों के अन्तर्गत प्रथम शिलालेख ( एतस्मै अर्थाय इयं लिपिः लिखिता....... ) एताये मे अठाये धंमसावनानि सावापितानि........) -सप्तम स्तम्भ लेख, टोपरा ( बिल्ली) ( एतस्मै अर्थाय धर्मश्रावणानि श्रावितानि...... ।) ३. यि इमाय कालाय बुदिपसि अमिसा देवा हुसु ते दानि मिसा कटा। ( ये अमुस्मै अमुष्मै कालाय जंबूद्वीपे अमृषा देवाः अभूवन्, ते इदानीं मृषा कृताः।) -रूपनाथ का प्रथम लघु शिलालेख ४. विवितं वे मंते आवतके हमा बुधसि धमसि संघसीति गलवे च प्रसादे च । ( विदितं बो भदन्ताः ! यावत् अस्माकं बुद्ध धर्मे सधे इति गौरवं च प्रसावः ।) -भाव शिलालेख ५. ए चु खो भंते हमियाये विसेया हेवं संघमे चिल ठितीके होसतीति........ ( यत् तु खलु मदन्ताः ! ममा दिश्यते एवं सद्धर्मः चिरस्थितिकः भविष्यति इति .... ) -भाब शिलालेख ६. शत्रुवनादेश: Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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