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________________ २६.] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड २ अशोक के अभिलेखों की भाषा के सन्दर्भ में अनेक विद्वानों ने कार्य किया है, जिनमें फ्रक, सेना तथा गुणे आदि के नाम मुख्य हैं। इस ओर गवेषणा करने वाले विद्वानों के अभिमत परस्पर मेल नहीं खाते। किन्हीं के अनुसार अशोक के अभिलेखों में दो प्रकार की भाषा प्राप्त होती है। कई तीन प्रकार की भाषा का होना मानते हैं। किन्हीं के मत से चार और किन्हीं के मत से उक्त अभिलेखों में पांच प्रकार की बोलियां प्राप्त होती हैं। निश्चित और इयता की भाषा में कुछ नहीं कहा जा सकता। उनमें गवेषणा के लिए बहुत अवकाश है। भिन्न-भिन्न शिलालेखों में प्रयुक्त कुछ विशिष्ट शब्दों की चर्चा एवं विवेचना की गयी है । उस चर्चा के प्रारम्भ में सूचित किया गया है कि उक्त अभिलेखों में मुख्यतः भाषा के तीन रूप दिखाई देते हैं। वे तीनों रूप सर्वथा व्यवस्थित और नियमित हों, ऐसा तो नहीं है, पर, एक समान-सी भाषा - सरणि को अवश्य लिये हुए हैं। पश्चिमोत्तर के शिला-लेखों का अन्य शिलालेखों से जो शब्द - प्रयोग - सम्बन्धी भेद है, यह विशेष प्रकार का है। उससे यह अनुमान करना सर्वथा संगत प्रतीत होता है कि उस समय उत्तर - पश्चिमी भारत में जो प्राकृत प्रचलित थी, उसकी अपनी कुछ विशेषताएं थीं। इस भिन्नता का कारण आर्यपरिवारीय निकटवर्ती पश्चिमी भाषाओं का प्रभाव रहा हो। यह वह भूभाग था, जो अफगानिस्तान से लगा हुआ था; अतः वहां की बोली का भी यहां की बोली पर प्रभाव पड़ना स्वाभाषिक था। हो सकता है, यह पैशाची प्राकृत्त का प्रदेश रहा हो। अश्वघोष के नाटकों की प्राक्त, खरोष्ठी ( प्राकृत )-धम्मपद की प्राकृत, तथा निय प्राकृत से भी ये शिलालेख बहुत कुछ मेल खाते हैं, जिसके सम्बन्ध में आगे चर्चा की जाएगी। पूर्व भारत और मध्यप्रदेश के शिलालेखों की भाषा में विशेष अन्तर नहीं है। वे शिलालेख पूर्व की प्राकृतें, जिनमें मागधी मुख्य है, का दिग्दर्शन कराते हैं। यद्यपि पूर्व और मध्य के शिलालेखों में शब्द प्रयोग-सम्बन्धी यत्किंचित् भेद अवश्य है, पर, यह भाषाविज्ञान की दृष्टि से गौण है। गिरनार, जो सौराष्ट्र में है, शूरसेन देश की सीमा के भन्तर्गत था। वहां के शिलालेखों से शौरसेनी के पुराने रूप की प्रतीति होती है । विविध नाम अशोक के अभिलेखों की प्राकृत का नाम - निर्देश भी विद्वानों ने भिन्न-भिन्न रूप में किया है । सेना ने इसे शिलालेखी प्राकृत कहा है। अन्य विद्वानों ने इसे असंमत ठहराया है; क्योंकि अशोक के अभिलेख केवल शिलाओं पर ही नहीं है। पिशेल ने इसे लेण-विभाषा के नाम से अभिहित किया है। लेण लयन का प्राकृत-रूप है। लयन का अर्थ कोठरी, For Private & Personal Use Only Jain Education International 2010_05 www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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