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________________ २५८ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : २ महानसंहि', विजितंहि' आदि इसके उदाहरण हैं। इन अभिलेखों में सप्तमी एकवचन के लिए ए का प्रयोग भी यत्र-तत्र दृष्टिगोचर होता है । जैसे, विजिते', विनये' तथा प्रकरणे आदि इसके उदाहरण हैं। शाहबाजगढ़ी तथा मानपेरा आदि स्थानों के अन्यान्य शिलालेखों में भी कहीं-कहीं सप्तमी एकवचन में एकाय प्रयुक्त हुआ है; जैसे, प्रमे, शिले' आदि । पर, ऐसा बहुत कम हुआ है। चतुर्थी एकवचन के एतस्मै, अमुष्मै आदि रूप, जिनमें स्म या म है, में भी सप्तमी १. पुरा महानसंहि देवानं प्रियस प्रियदासिनो रा अनुदिवसं बहूनि प्राणसतसहस्रानि आरभिसु। (पुरा महानसे देवानां प्रियस्य प्रियदर्शिनः रामः अनुदिवसं बहूनि प्राणशतसहस्राणि आलप्सत्""""" -गिरनार चतुर्दश शिलालेख के अन्तर्गत प्रथम शिलालेख .२. सर्वत विजितंहि देवानं प्रियस प्रियदसिनो राजो..... ।) . ( सर्वत्र विजिले देवानां प्रियस्य प्रियदर्शिनः राशः.... । -चतुर्दश शिलालेख के अन्तर्गत द्वितीय शिलालेख ३. सर्वत विजिते मम पुता च रालुके व प्रादेसिके चपंचसु पंचसु वासेसु अनुसंधान नियातु....। (सर्वत्र विजिते मम युक्ताः रज्जुकाः प्रादेशिकाः पंचसु पंचसु वर्षेसु अनुसंधानं निष्क्रमन्तु।) -चतुर्दश शिलालेख में तृतीय शिलालेख ४. सरसके एव विजये छाति च........ । (शराकर्षिणः विजये शान्ति व........., शलालेख में प्रयोदश शिलालेश ५. लका व अस तम्हि तम्हि प्रकरणे। (लघुका वा स्यात् तस्मिन् तस्मिन् प्रकरणे ) -चतुर्दश शिलालेख में द्वादश शिलालेख १. .."अवकप प्रमे शिले- तिस्तिति प्रमं अनुशशिशंति । -शाहबाजगढ़ी चतुर्दश शिलालेख में चतुर्थ शिलालेख ........"अवकपं ध्रमे शिले - तिस्तितु प्रमं अनुशशिशंति । ( ......."यावत् कल्पं धर्मे शोले व तिष्ठन्तः धर्ममनुशासिष्यन्ति ।) ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only For www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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