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________________ भाषा और साहित्य ]. आलोधनसि' आदि का प्रयोग हुआ है । शिलालेखी प्राकृत द्वितीय कलिंग शिलालेख में क्षणे के लिए धोली में खनसि' और जौगढ़ में खने का प्रयोग हुआ है । इसी प्रकार चतुर्दश शिलालेखों के अन्तर्गत द्वादश शिलालेख में कालसी में पकलनशि, शाहबाजगढ़ी में प्रकरणे तथा मानसेरा में पकरणसि का प्रयोग हुआ है । आशय यह है कि सप्तमी एकवचन के लिए ए प्रत्यय का प्रयोग भी इन शिलालेखों में पत्र- छत्र होता रहा है । · गिरनार के अभिलेख में सप्तमी एकवचन के लिए प्रायः म्हि का प्रयोग हुआ है । कहींकहीं म् का अनुस्वार हो गया है, हि यथावत् रहा है । एकतर म्हि , धमन्हि, सीलम्हि ", १. एते च अने च बहुका मुखा दानविसगसि बियपट से मम चैव देविनं च सवसि च मे आलोधनसि ......... ५. लहुक व सिय तसि तसि प्रकरणे । ६. लहुक व सिय तसि तसि पकरणसि । 7 ( एते च अन्ये च बहुका: मुख्याः दानविसर्गे व्यापृताः ते मम चैव देवीनां च, सर्वस्मिन् च मम अवरोधन" ) २. इयं च लिपिखनसि अंतला पि तिसेन एकेन पि सोतविये । ३. इयं च लिपी ...खने अंसला पि तिसेन एकेन पि सोतवियो । ( इयं च लिपि....क्षणे अन्तरा अपि तिष्येन एकेन अपि श्रोतव्या । ) ४. लहका वा शिया तशि तशि पकलनशि । लघुता वा स्यात् तस्मिन् तस्मिन् प्रकरणे । > [ २५७ ७. ......... यत्र नास्ति मनुसानं एकतर म्हि पासंडन्हि न नाम प्रसादो । यत्र नास्ति मनुष्याणामेकतरस्मिन् अपि पाषण्डे नाम प्रसादः । ) - चतुर्थ शिलालेख के अन्तर्गत त्रयोदश शिलालेख Jain Education International 2010_05 ८. आव संवट कपा धंमम्हि सोलम्हि तिस्टंतौ धर्म अनुसासिसंति | ( ........यावत् संवत् कल्पं धर्मे शीले च तिष्ठन्तः धर्ममनुशासिष्यन्ति । ) - गिरनार चतुर्दश शिलालेख के अन्तर्गत चतुर्थ शिलालेख For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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