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________________ २५४ 1 मागम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन अस्वय' शब्द का प्रयोग हुआ है। यह विचित्र स्थिति प्रतीत होती है। ऐसा क्यों हुआ, कोई कारण नहीं बताया जा सकता । क्या यह सम्भावना करना असंगत होगा कि जिन स्थानों में ये अभिलेख लिखवाये गये, वहां दो प्रकार के उच्चारण रहे हों, जिनमें एक में ऐसे शब्दों के प्रारम्भ में उच्चारण सुकराता के लिए अकार को जोड़ने की प्रवृत्ति चलती हो। स्पष्ट रूप में कुछ कहा नहीं जा सकता । यह कल्पना मात्र है । सम्राट अशोक के तीन गुहालेखों में प्रथम तथा द्वितीय में दरवस शब्द के लिये दुवाडस' का प्रयोग हुआ है । किसी शब्द के अन्तर्ती त्व पर उक्त नियम लागू नहीं होता। वहां त्व का त हो जाता है। जैसे, चत्वारि> चत्तालि। स्म और धम के लिये फ का प्रयोग भी अभिलेखों में प्राप्त होता है। जैसे, द्वितीय कलिंग शिलालेख में पुष्मासु के लिये तुफेसु, १. .... ... किंति लजूका अस्वथ अभोता कंमानि पवतयेवू ...। -टोपरा, चतुर्थ स्तम्भ लेख ..........."किंति लजूक अस्वथ अभीत कमानि पवतयेवू......। -लौड़िया अरराज, चतुर्थ स्तम्भ लेख .... ..."किंति लजूक अस्वथ अभीत कमानि पवतयेवू......। -लौड़िया नन्दमगढ़, चतुर्थ स्तम्भ लेख (... ""किमित रज्जुकाः स्वस्थाः अभीता कर्माणि प्रवर्तयेयुः...... 1 ) २. लाजिना पियवसिना दुवाडस ( वसामिसितेना ) इयं ( निगो) ह कुभा दि (ना ) आ (जी.) विकेहि । ( राज्ञा प्रियदर्शिना द्वादशवर्षाभिषिक्तेन इयं न्यग्रोध-गुहा दत्ता आजीवकेभ्यः । ) -प्रथम गुहालेख लाजिना पियदसिना दुवाडसवसाभिसितेना इयं कुभा खलतिक परतसि दिना ( आ-) जीविकेहि। ( राजा प्रियदर्शिना द्वायसवर्षाभिषिक्तेन इयं गुहा खलतिक-पर्वते दत्ता मालीवकेभ्यः । ) -द्वितीय गुहालेख ३. .... .एतस अथस अं तुफेसु मनुस ( थि ।। -नौगढ एतसि उठसि अं तुफे ( सु).......। -धौली (......"एतस्य अर्थस्य यत् युष्मासु अनुशिष्टिः ) Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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