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भाषा और साहित्य ] शिलालेली - प्राकृत
[ २५५ अस्मासु के लिये अफेसू,1 अस्माकम् के लिए अफाक', युष्मान् के लिये तुफेमि मौर तुके तथा प्रथम कलिंग शिलालेख में युस्माभिः के लिये तुफेहि का प्रयोग हुआ हैं।
सारनाथ के लघु स्तम्भ लेख में युस्माकम् के लिये तुफाकं का प्रयोग हुआ है। सारनाथ के इस लेख से एक विशेष तथ्य पर और प्रकाश पड़ता है। वहां ययम् के लिए भी (टिप्पणी में उद्धत पंक्ति में) तुफे का प्रयोग हुआ है । इससे यह प्रकट होता है कि म या स्म जहां प्रत्यक्ष तो नहीं होते, पर, जिनका अन्तःस्थित रूप या मूल शब्द उस प्रकार का है, वहां
१. सिया अंतान अविजितानं कि छदे सु लाजा अफेसू ति ।
-जोगढ़ सिपा अंतानं अविजितानं किं छंद सुलाज (अ) फेस......।
-धौली ( स्थात् अन्तानामविजितानां किं छन्दः असो राजा अस्मासु इति । ) २. हेव पापुनेवू ति खमिसति ने देवानं पिये अफाकं .. ... (एवं च प्राप्नुयुः इति क्षमिष्यते नः देवानां प्रियः अस्माकम् ... ।।
-धौलो ३. एताये च अठाये हकं तुफेनि अनुसासामि ।
-जौगढ़ एतसि अठसि हकं अनुसासामि तुफे।
-धौलो ( एतस्मै च अर्थाय अहं युष्मान् अनुशास्मि ।)
-द्वितीय कलिंग, शिलालेख ४. तत तुफेहि इछितये किति मझ पटिपातयेम ।
-जौगढ़ तत इछिसबिये तुफेहि किंति मझ पटिपादयेम ति।
-चोली (ततः एष्टव्यं युष्माभिः किमिति मध्यं प्रतिपावयेम ति।)
-प्रथम कलिंग, शिलालेख ५. आवतके च तुफाकं आहाले सवत विवासयाथ तुफे एतेन वियंजनेन । (पावत् च युष्माक माहारः सर्वत्र विवासवत यूपमेतेन व्यंजनेन ।)
-लघु स्तम्भ लेख, सारनाथ
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