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________________ २४४ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन | खण्ड : २ शुश्र षताम् के लिए सुसुषातु सर्वम् के लिए षवं, अपपरिस्रवः के लिए अपपलाषवे, स्यात् इति के लिए षियातिति, एषाः के लिए ऐषे, उशता के लिए उषुटेन, ईदृशम् के लिए हेडिषे, यादृशम् के लिए आदिष, धर्मसंविभागः के लिए धमषं विभागे, धर्मसम्बन्ध के लिए धर्मष बधे, दाषभट (त) कपि, सम्यक् प्रतिपत्ति के लिए षम्यापटिपति, शुश्रूषा के लिए पुषुषा , संस्तुत १. धंमसुसुषा सुसुषातु मे ति धमवतं वा अनुविधीयतुति । (... - धर्मशुश्रूषां शुश्रूषतां मम इति धर्मव्रतमनुविधसामिति ।। -दशम शिलालेख २. ......त षवं पालतिक्याये वा............ । ( ..."तत् सर्व पारत्रिकाय एव..... ....।) -दशम शिलालेख ३. किति सकले अपपलाषवे षियातिति । ( किमति सकल: अपपरिस्रवः स्यात् इति ) -दशम शिलालेख ४. एषे चु पलिसवे ए अपुनै । __ (एष तु परिस्रवः यत् अपुण्यम् ।) -दशम शिलालेख ५. .........."उषुटेन वा अनत अगेना पलकमैना षवं पलितिरितु । (.... "उशता वा अन्यत्र अग्रयात् पराक्रमात् सर्वं परित्यज्य । ) -दशम शिलालेख ६. नथि हेडिषे दाने आदिषं घंमदाने...........। (.......... नास्ति ईदृशं दानं यावां धर्मदान........।) -एकादश शिलालेख ७. धमषं विभागे, धमषंबंधे............। (....... धर्मसंविभागः धर्मसम्बन्धः वा ।) -एकादश शिलालेख ८. तत ऐष दाषभटकषि षम्यापटिपति मातापितिषु षुषुषा........। ( तत्र इदं भवति-दासमृतकेषु सम्यक् प्रतिपत्तिः, मातापित्रौः शुश्रुषा -एकादश शिलालेख ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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