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________________ भाषा और साहित्य । शिलालेखी - प्राकृत [ २४३ इन अभिलेखों में सप्तमी विभक्ति के लिए मिह, सि और ए; तीनों प्रत्यय प्राप्त होते हैं । गिरनार में म्हि, कालसी, धौलो आदि में सि तथा शाहबाजगढ़ी और मानसेरा में ए का प्रयोग प्राप्त होता है । उदाहरणार्थ, चतुथे शिलालेख में सप्तमी के शीले रूप के लिए गिरनार में सोलम्हि', कालसी में सिलसि', धौली में सीलसि', शाहबाजगढ़ी तथा मानसेरा में शिले रूप प्राप्त होते हैं । अभिलेखों की भाषा : कुछ सामान्य तथ्य पश्चिमोत्तर के शिलालेखों के अतिरिक्त प्रायः सभी शिलालेखों में तालव्य श, मूर्धन्य व और दन्त्य स के स्थान पर दन्त्य सकार का ही प्रयोग हुआ है । कालसी के शिलालेख में तालव्य श और मूर्धन्य ष भी मिलता है । कालसी के प्रथम नौ शिलालेखों में तो तालव्य श और मूर्धन्य ब के स्थान पर दन्त्य स प्राप्त होता है, पर, उनके अतिरिक्त अन्य शिलालेखों में अधिकांशतः मूर्धन्य ष तथा क्वचित् तालव्य श प्राप्त होता है। प्रियदर्शी के लिए पियदषी, यशः के लिए यषो, धर्म-शुश्रूषा के लिए धमसुसुषा, - १. ... ......"धमम्हि सोलम्हि तिस्तो धम अनुसासिसति । -गिरनार, चतुर्थ शिलालेख २. धमसि सिलसि चा चिठितु अंमं अनुसासिसंति । –कालसी ३. धंम ( सि ) सीलसि च ( चिठि ) तु धर्म अनुसासिसंति ! -धौली ४. ध्रमे शिले च तिस्तिति प्रमं अनुशशिशंति ।....... --शाहबाजगढ़ो ५. प्रमे शिले च तिस्तितु ध्रम अनुशशिशंति । -मानसेरा ( धर्मे शोले व तिष्ठन्तः धर्ममनुशासिष्यन्ति ।) ६. देवानं पिये पियदषी लाजा यलो वा किति वा न महाथावहा मनति । ( देवानां प्रियः प्रियदर्शी राजा यशः वा कोर्ति वा न महार्मवहं मन्यते । ) -दशम शिलालेख Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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