________________
२४२ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशोलन
[ खण्ड :२ शाहबाजगढ़ी में चु और मानसेरा में चु आया है।' धौली और जौगढ़ में जो च प्रयुक्त हुआ है, उसका कोई कारण दिखाई नहीं देता । सम्भवतः लिपि-दोष से ऐसा हुआ हो । धौली और जौगढ़ के शिलालेख में, जैसा कि टिप्पणी में उद्भत किया गया है, जनों या जने के बदले मुनिसा का प्रयोग हुआ है, जो मनुष्य का प्राकृत रूप है। इन शिलालेखों में तु के प्रसंग में ही प्रायः त के लिए च का प्रयोग मिलता है, अन्यत्र नहीं । पर, चतुर्थ शिलालेख में कालसी और धौली में तिष्ठन्तः के लिए चिठितु का प्रयोग हुआ है । शाहबाजगढ़ी और मानसेरा के शिलालेखों में लिपि के लिए प्रायः रिपि शब्द का प्रयोग हुआ है । अन्यत्र प्रायः सभी स्थानों पर लिपि या लिपी शब्द आया है ।
-
-
-
१. जनो तु का उचावचछंदो उचावचरागो । --गिरनार
जने चु उचावुचाछंदे उचावुचलागे । -कालसी मुनिसा च उचावुचछंदा उचावुचलाग । –धौली मुनिसा घ उचवुचछंदा उचावुचलागा। -जौगढ़ जनो चु उचवुचछंदो उचवुचरगो। -शाहबाजगढ़ी जने चु उचवुचछंदे उच्चवुचरगे। -मानसेरा
( जन : तु उच्चाबचच्छन्दः उच्चावचरागः ।) २. धंमसि सिलसि चा चिठितु धर्म अनुसासिसंति । -कालसी
धमसि सीलसि च चिठितु धर्म अनुसासिसंति । –धौली
( धर्मे शीले च तिष्ठन्तः धर्ममनुशासिष्यन्ति ।) ३. (क) (अ) यं भ्रमदिपि देवन प्रियअस......."रो लिखपितु ।
-शाहबाजगढ़ी, प्रथम शिलालेख अयि ध्रमविपि ( दे ) वन ( प्रि ) येन (प्रिय ) द ( शिन ) रन ( लि ) खपित ।
-मानसेरा ( इयं धर्मलिपि : देवानां प्रियेण प्रियदर्शिना राज्ञा लेखिता ।) (ख) एतये अठये अयं प्रमदिपि विपिस्त............ एतये अध्रये अयि प्रमदिपि लिखित............
-मानसेरा ( एतस्मै अर्थाय इयं धर्मलिपि: लिखिता........।) (ग) अयो ध्रमविपि घेवनं प्रियेन प्रिशिन रो दिपपितो।
____-शाहबाजगढ़ी, चतुर्वश शिलालेख ( इयं धर्मलिपिः देवानां प्रियेण प्रियदर्शिना राज्ञा लेखिता।)
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org