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२३२ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खण्ट : २ को राज-भाषा उससे कुछ भिन्न, कुछ परिनिष्ठित रूप लिये हुए थी। यद्यपि राज-भाषा का क्षेत्र समस्त राज्य होता है। राज्य-सम्बन्धी कार्यों में उसका उपयोग सर्वत्र होता है। बोलचाल में प्रादेशिक भेदों के अनुसार उसमें कुछ-कुछ भिन्नता रहती है । सम्राट अशोक ने जो शिलालेख लिखवाये, वहीं उनका दृष्टिकोण था कि जहां-जहां राज-भाषा को लोग समझ सकते हों, वहाँ उसी में आदेशों ध विचारों का उत्कीर्णन हो; ताकि जन-जन उन शिक्षाओं तथा भावनाओं से अवगत हो सके।
अशोक के वे शिलालेख, जो पूर्व भारत में हैं, उसी भाषा में हैं, जिसका उसके राज्यकार्य में प्रचलन था। मध्यदेश में भी उस भाषा को समझने में असुविधा नहीं थी। बोलचाल में यहां कुछ नगण्य भिन्नता अवश्य थी। इस प्रकार गंगा-यमुना की घाटियों से लेकर महानदी तक के शिलालेखों की भाषा लगभग समान है। जहां-तहां कुछ भेद है, पर, वह बहुत महत्वपूर्ण नहीं है । __ अशोक का गाज्य दूर-दूर तक फैला हुआ था। उसमें ऐसे भाग भी थे, जहां अशोक की राज-भाषा अर्थात् पूर्व की भाषा लोगों द्वारा सुगमता से नहीं समझी जा सकती थी । वहां की भाषा भिन्न थी। ऐसे स्थानों पर जो शिलालेख लिखवाये गये, इस बात का ध्यान रखा गया कि उनमें घेसी भाषा का प्रयोग किया जाए, जिसे वहां के निवासी जन-साधारण सरलतापूर्वक हृदयंगम कर सकें । इसका अर्थ यह हुआ कि उन-उन स्थानों की प्रादेशिक बोलियों से शिलालेखों की भाषा अत्यधिक प्रभावित हुई। यह तथ्य उत्तर-पश्चिम के शाहबाजगढ़ी तथा मानसेरा के शिलालेखों से स्पष्ट है। यहां की तथा पूर्व व अन्य स्थानों के शिलालेखो की भाषा में सूक्ष्म दृष्टया रहे हुए अन्तर को विवेचना मागे को जायेगी।
. गिरनार सौराष्ट्र : गुजरात ) में स्थित है। यहां की बोलचाल की भाषा पूर्व की भाषा से अपेक्षाकृत भिन्न थी। गिरनार के शिलालेख को भाषा पूर्व के शिलालेखों की भाषा से कुछ भिन्न होना स्वाभाविक ही है । उस पर मध्यदेश की बोलचाल की भाषा का कुछ प्रभाव अवश्य है, जो उसमें प्रयुक्त भाषा से स्पष्ट है।
दक्षिण-आय-भाषा-परिवार की भाषामों के बाहर का क्षेत्र है। अशोक के समय में भी यहां लमभग उसी प्रकार द्रविड़-परिवार की भाषाओं का प्रचलन था, जैसा मान है। इतना अवश्य है, वे द्रविड़ परिवारीय भाषाए' आज की ( द्रविड़-परिवारीय ) भाषाओं की पूर्वजा थीं। भाषा-परिवारीय भिन्नता के कारण ही दक्षिण के शिलालेखों की भाषा स्थानीय भाषा से अप्रभावित रही। वहां के लेखों की भाषा में पूर्व की भाषा से जो थोड़ी-बहुत भिन्नता दृष्टिगोचर होती है, वह पविषम का प्रभाव है। यही कारण है कि दक्षिण के शिलालेखों की घेराठ, सांची भौर रूपनाथ के लेखों से यत्किंचित् समानता दृष्टिगत होती है।
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