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________________ भाषा और साहित्य] शिलालेखी. प्राकृत [ २३१ कौशाम्बी से इलाहाबाद लाया गपा। लगभग तीस वर्ष तक राज्य करने के बाद सम्राट अशोक ने अपने जीवन के अन्तिम भाग में ये स्तम्भ-लेख उत्कीर्ण करवाये थे। जिन विषयों का चतुर्दश शिलालेखों में उल्लेख किया गया है, प्रायः उन्हीं का इन स्तम्भ लेखों में शब्दान्तर से वर्णन है। एक प्रकार से ये चतुदंश शिलालेखों के परिशिष्ट कहे जा सकते हैं)। इन स्तम्भ-लेखों में उन उपायों तथा व्यवस्थाओं का उल्लेख है, जिन्हें अशोक ने अपने सुदीर्घ शासन-काल में धर्म-प्रसार के हेतु व्यवहृत किया था । इन लेखों में अशोक की धार्मिक नीति, नैतिक आदर्श, राज्याधिकारियों के कर्तव्य, अहिंसा की सार्वजननीन तथा व्यापक क्रियान्विति के निमित्त वर्ष के अन्तर्गत कुछ दिनों के लिए विभिन्न पशुओं का वध न करने के सम्बन्ध में आदेश आदि महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डाला गया है। 5. लघु स्तम्भ-लेख - ऐसा समझा जाता है कि इनका उत्कीर्णन ई० पूर्व २४८ से ई० पू० २३२ के मध्य हुआ। ये सापनाथ ( वाराणसी के समीप, उत्तर प्रदेश ) में प्राप्त हुए हैं। कौशाम्बी का स्तम्भ-लेख उसी स्तम्भ पर खुदा हुभा है, जो इलाहाबाद के किले में स्थित है। तीनों स्तम्भ-लेखों में कहा गया है कि जो भिक्षु या भिक्षुणी संघ में फूट डालेंगे, उन्हें संघ से पृथक् कर दिया जायेगा। ऐसा प्रतीत होता है कि सम्राट अशोक के समय बौद्ध धर्मसंघ में बढ़ते जा रहे वैमनस्य, विद्वष या फूट को रोकने के लिए जो सभा हुई थी, उसमें किये गये निश्चयों को प्रसारित करने की दृष्टि से ये लेख लिखवाये गये । सम्राट अशोक धर्मसंघ की फूट को रोकने के लिए कितना चिन्तित और जागरूक था, इससे यह प्रकट होता है । इलाहाबाद के किले में स्थित स्तम्भ पर एक लेख और है, जो रानो के लेख के नाम से प्रसिद्ध है । अशोक की द्वितीय पत्नी का नाम कारुषाकी था, जो राजकुमार तीवर की माता थी। इस लेख में पानी कारुषाकी की दानशीलता का उल्लेख है। अशोक के शिलालेखों का यह संक्षिप्त परिचय है। प्रस्तुत प्रयोजन शिला-लेखों की भाषा का विश्लेषण है। इसलिए यह आवश्यक है कि पहले उनका स्थान-भेद तथा भाषाभेद की दृष्टि से विभाजन किया जाये । इस अपेक्षा से ये शिलालेख उत्तर-पश्चिम, पश्चिम, पूर्व, पूर्व-दक्षिण, मध्य देश और दक्षिण; स्थूल रूप से इम छः भागों में बांटे जा सकते हैं । अशोक ने ये लेख अपनी राज-भाषा में लिखवाये। उसकी राजधानी पाटलिपुत्र पूर्व भारत में थी। उसकी राज-भाषा पूर्वीय प्राकृत पी। राज-भाषा बोलचाल की भाषा की अपेक्षा शिष्टत्व की ओर झुकी रहती है। दूसरे शब्दों में यह बोमचाल की भाषा से कुछ परिमार्जित होती है, अतः अशोक के काल में पूर्व भारत में नो भाषा बोलचाल में प्रयुक्त थी, ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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