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________________ २३. आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन सम्प्रदायों के प्रति भी उसका आदर था। धार्मिक सहिष्णुता का यह एकउत्कृष्ट उदाहरण है। इसके अतिरिक्त आजोधक-सम्प्रदाय के प्रति सम्राट अशोक के आकर्षण का एक और कारण भी सम्भावित जान पड़ता है। महावंश सतिका में उल्लेख है कि अशोक की माता धर्मा थी। वह मौर्यवंशोत्पन्न थी। वह बिन्दुसार की अग्रमहिषी या पटरानी थी। उसका पितृ-कुल आजीवक-सम्प्रदाय का अनुयायीथा । उनके धर्माचार्य का नाम जनसेन था। यह रानी भी अपनी पैतृक परम्परा के अनुसार आजीवक-सम्प्रदाय में श्रद्धा रखती थी। डा. राधाकुमुद मुकों का कथन है कि सम्भवत: इसी कारण अशोक का आजीवकों के प्रति झुकाव रहा हो। दिव्यावदान में अशोक की माताका नाम शुभद्रोगी लिखा है। उसे एक ब्राह्मण-कन्या बतलाया है। जो भी हो, अशोक द्वाशा आजीवकों को गुफा-दान किये जाने के प्रसंग का उसकी माता के आजीवक-सम्प्रदाय की अनुयायिनी होने से जोड़ा जाना अधिक संगत नहीं लगता। षष्ठ स्तम्भ लेख में अशोक द्वारा सत्व पासंडा मे पूजिता जो कहा गया है, वह उसकी सभी धर्म-सम्प्रदायों के प्रति उदास्तापूर्ण नोति और बादर का स्पष्ट परिचायक है। ६. तराई के दो स्तम्भ-लेख नेपाल की तराई में रुम्मिनदेई तथा निग्लीव या निग्लीवा नामक गांव में ये लेख प्राप्त हुए हैं । इसका समय ई० पू० २५. माना जाता है। यद्यपि कलेवर में ये लेख बहुत छोटे है, पर, कई ऐसे कारण हैं, जिनसे इनका महत्व बढ़ जाता हैं। इन लेखों से निश्चित रूप से यह ज्ञात होता है कि अशोक ने बौद्ध-धर्म के पवित्र स्थानों की यात्रा की थी। रुम्मिनदेई के लेख से लुम्बिनी वन का पता चल जाता है, जहां तथागत ने जन्म ग्रहण किया था। बौद्ध इतिहास में इस स्थान का विशेष महत्व है। निग्लीव का लेख यह प्रकट करता है कि सम्राट अशोक की भक्ति गौतम बुद्ध के प्रति तो थी ही, पूर्व काल के बुद्धों के प्रति भो थी । साथही-साथ ये लेख व्यक्त करते हैं कि नेपाल को तराई तक अशोक की साम्राज्य-सीमा थी। ७. सप्त स्तम्भ-लेख ई० पू० २४३ से २४२ इनका समय माना जाता है । ये लेख टोपारा ( हरियाना में अम्बाला के निकट ), मेरठ ( उत्तर प्रदेश ), कौशाम्बी ( इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश ). रामपुरवा ( चम्पारण, बिहार ), लोरीया ( अयराज, बिहार ), लौरिया ( नन्दनगढ़, बिहाय ) तथा आरा (बिहार) में प्राप्त हुए हैं । टोपारा और मेरठ स्थिति स्तम्भों को फिरोज शाह दिल्ली उठवा लाया था, जो इस समय वहीं हैं। कौशाम्बो के लेख वाला स्तम्भ इस समय इलाहाबाद के किले में है। वह ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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