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भाषा और साहित्य शिलालेखी - प्राकृतं
[ २२६ २. मानसेरा ( जिला हजारा-पाकिस्तान ) । ३. कालसी ( मंसूरी से लगभग १५ मील पश्चिम की ओर स्थित जिला देहरादून,
उत्तरप्रदेश) ४. गिरनार ( जूनागढ़ के समीप, गुजरात ) ५. सोपारा ( जिला थाना, महाराष्ट्र ) ६. धौली ( जिला कटक, उड़ीसा) ७. जोगढ़ ( गंजाम, तमिलनाडु) ८. इरागुड़ी ( आन्ध्र ) .. धर्म, नीति, मनुष्यों और पशुओं की चिकित्सा, सार्वजनिक कार्य, राजा के कर्तव्य, राजा की महानता के आधार, प्रादेशिक अधिकारियों के कर्तव्य, जन-साधारण से सम्पर्क, धार्मिक सहिष्णुता, वास्तविक कीति, वास्तविक दान, कलिंग-विजय, उसके कारण, युद्ध के प्रति घृणा, भेदी-घोष के स्थान पर धर्म- घोष द्वारा देशों की विजय प्रभृति विषयों पर इन शिलालेखों में अशोक के विचार, मादेश भादि उल्लिखित हैं ।
४. दो कलिंग - शिलालेख
ई० पूर्व २५६ में इनका लेखन हुमा था। ये लेख धौली और जौगढ़ में प्राप्त हुए हैं। इन दोनों लेखों का सम्बन्ध नव-विजित कलिंग देश के शासन से है। इनमें सम्राट अशोक द्वारा अपने अधिकारियों को दिये गये उन आदेशों का उल्लेख है, जिनमें कलिंग देश और उसकी सीमा पर बसने वाली जंगली जातियों पर किस प्रकार शासन किया जाना चाहिए। ये लेख अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं । वस्तुतः ये दोनों लेख धौलो और जौगढ़ के चतुर्दश शिलालेखों के परिशिष्ट के समान हैं। चतुर्दश शिलालेखों के लिखे जाने के पश्चात् ये उनमें जोड़े गये थे।
५. तान मुहा-लेख ____ गया (बिहार ) की समीपवर्ती बराबर की पहाड़ियों में ये प्राप्त हुए हैं। ये लेख अशोक के राज्य-काल के १३वें और २० वर्ष अर्थात् ई. पूर्व २५७ और २५.० में उत्कीर्ण करवाये गये थे। इनमें उल्लेख किया गया है कि राजा प्रियदर्शी ने अपने राज्याभिषेक के बारह वर्ष पश्चात् ये गुफाए आजीवकों को प्रदान की। बुद्ध और महावीर के समय में श्रमण-परम्परा के अन्तर्गत आजीवक भी एक सम्प्रदाय था। उसके भिक्ष निघस्त्र रहते थे। मंखलि गोशाल उस सम्प्रदाय के अधिनायक थे। सम्राट अशोक स्वयं बौद्ध था, पर, अन्य
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