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२२८ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : २ १. दो लघु शिलालेख
ई० पूर्व २५८ या २५७ के लगभग इनका लेखन हुआ । इनमें से प्रथम शिलालेख कर्नाटक के सिद्धपुर, जतिंग रामेश्वर और ब्रह्मगिरि, मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले में रूपनाथ तथा दतिया जिले में गुर्जरा ग्राम के निकट, बिहार के शाहाबाद जिले में सहसराम, राजस्थान के जयपुर जिले में वैराठ तथा आन्ध्र में मास्की, गविमथ, पाल्कीगुड व इरागुड़ी में प्राप्त होता है । सम्भवतः अशोक के राज्य-काल के तेरहवें वर्ष में इसका लेखन हुआ। इस (प्रथम लघु) शिलालेख का अर्थ लगाने में विद्वानों को जितनी कठिनता का सामना करना पड़ा, पेसा और किसो लेख के सम्बन्ध में नहीं हुआ। सम्राट अशोक के व्यक्तिगत जीवन का कुछ वृत्तान्त इस शिलालेख से ज्ञात होता है; अत: ऐतिहासिक दृष्टि से इसका विशेष महत्व है।
द्वितीय लधु शिलालेख केवल उत्तरी कर्नाटक के सिद्धपुर, जतिंग रामेश्वर और ब्रह्मगिरि; इन तीन स्थानों में प्राप्त होता है । इसमें अशोक द्वारा धर्म के व्यावहारिक पक्ष का विवेचन किया गया है।
२. भाबू शिलालेख
ई.पूर्व २५७ के लगभग उसका लेखन हुआ। यह जयपुर (राजस्थान ) जिले के अन्तर्गत वैराठ नामक स्थान में एक पहाड़ी की चट्टान पर प्राप्त हुआ था। कहा जाता है कि चैराठ वही स्थान है, जो महाभारत्त-काल में मत्स्य देशाधिपति महाराज विराट की राजधानी था, जहां पांडवों ने एक वर्ष का अज्ञातवास व्यतीत किया था। बौद्ध धर्म के इतिहास में इस शिलालेख का बहुत महत्व है। इसमें सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म और संघ की शरण ग्रहण करने का वर्णन है। साथ-ही-साथ बौद्ध धर्म-ग्रन्थों के उन सात स्थलों का उल्लेख किया गया है, जिन्हें सम्राट अशोक इस योग्य मानता था कि भिक्षु और भिक्षुणियां तथा उपासक व उपासिकाएँ उनका अनुशीलन करें, उन पर विशेष ध्यान दें। वे सातों स्थल बौद्ध धर्म के ग्रन्थों में यथावत् रूप में प्राप्त हैं । ऐसा अनुमान किया जाता है कि अशोक ने जब यह शिलालेख उत्कीर्ण करवाया, तब वह सम्भवतः घेराठ स्थित किसी संघाशाम में प्रवास करता था।
३. चतुर्दश शिलालेख
ई. पूर्व २५७ या २५६ के आस-पास ये शिलालेख लिखवाये गये थे। ये आठ भिन्नभिन्न स्थानों में प्राप्त हैं, जो इस प्रकार है :
१. शाहबाजगढ़ी ( पेशावर से ४० मीक उत्तर-पूर्व में स्थित )
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