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________________ भारत के इतिहास में अशोक का नाम एक ऐसे महान् सम्राट के रूप में स्मरण किया जाता है, जिसने शस्त्र-बल से ही नहीं, मैत्री, करुणा और सेवा के आदर्शों द्वारा भी बहुत बड़ी विजय-सफलता प्राप्त की। सम्राट अशोक बौद्ध धर्म का महान् सेघी तो था ही, वह अन्य धर्मों का भी सम्मान करता था। प्राणि-मात्र के हित में उसे आस्था थी। उस ओर वह जीवन-भर प्रयत्नशील भी रहा । अशोक के जीवन, धर्म, व्यवहार, नीति, शासन और व्यवस्था के सम्बन्ध में सबसे बड़ा प्रमाण उसके शिलालेख हैं। उसने विशेषतः अपने साम्राज्य के सीमा-पानों तथा जन-संख्या. बहुल अन्तर्ती भागों में ये अभिलेख उत्कीर्ण करवाये । शिलालेखों का भाषा : महत्व भारत की प्राचीन भाषा के विश्लेषण तथा अनुसन्धान के सन्दर्भ में इम लेखों का बहुत महत्व है । जिस भाषा में ये लेख लिखे गये हैं, वह अशोक के साम्राज्य में अर्थात् लगभग ई. पूर्व तीसरी शती में उत्तर भारत में प्रचलित भाषा का एक साहित्यिक या शिष्ट रूप प्रस्तुत करती है । उत्तर भारत से यहां विन्ध्य के उत्तर में स्थित पश्चिम, मध्य और पूर्व भारत से भाशय है। इन अभिलेखों की भाषा के सम्बन्ध में पहले विद्वानों का ऐसा अभिमत रहा कि ये पालि भाषा में लिखे हुए हैं । इस सम्बन्ध में उत्तरोत्तर अनुसन्धान एवं गवेषणा चलती रही और अन्ततः विद्वान् इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ये अभिलेख वास्तव में प्राकृत भाषा में लिखे हुए हैं, जो उस समय यत्किंचित् प्रादेशिक भेद के साथ समग्र उत्तर भारत में फैली हुई थी। शिलालेखों का वर्गोकरण प्राकृत भाषा के लिपि-बद्ध प्राप्त होने वाले ये अभिलेख सबसे प्राचीन उदाहरण हैं । ये तीन रूपों में मिलते हैं । इनमें से कुछ चट्टानों पर, कुछ गुफामों की दीवारों पर तथा कुछ स्तम्भों पर उत्कीर्ण हैं। उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में कर्नाटक तक और पश्चिम में उत्तर-पश्चिमी सीमाप्रान्त ( पाकिस्तान ) से लेकर बिहार और उड़ीसा तक फैले हुए हैं। समयापेक्षया ये अभिलेखमाठ समूहों में बांटे जा सकते हैं । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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