SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाषा और साहित्य ] पालि-भाषा और पिटक-वाङ्मय [२०३ पाठ संशोधित करने के अभिप्राय से एक परिषद् का आयोजन हुआ, जिसे छठी संगीति कहा जाता है। उसकी उपलब्धि के रूप में पालि - त्रिपिटक का अन्तिम रूप में संशोधित पाठ तैयार किया गया तथा उसका बर्मी-लिपि में प्रकाशन किया गया। सुप्रसिद्ध बौद्ध विद्वान् भिक्षु जगदीश काश्यप के सम्पादकत्व में देवनागरी लिपि में जो पालि-त्रिपिटक का संस्करण निकला है, वह मुख्यतः इसी बर्मी त्रिपिटक के पाठ पर आधारित है। निष्कर्ष त्रिपिटक के स्वरूप-गठन को दो भागों या दो कालों में बांटा जा सकता है। पहला भगवान बुद्ध से लेकर लंका - वट्टगामणि अभय तक का समय, जब त्रिपिटक ताडपत्रों पर लेख-बद्ध हुए। दूसरा लेख-बद्ध होने से लेकर अब तक का काल, जबकि त्रिपिटक मुद्रित रूप में उपलब्ध हैं। पहला काल बहुत महत्वपूर्ण है। इसी में वे तीन संगीतियां आयोजित हुई, जो त्रिपिटक के स्वरूप - निर्धारण की दृष्टि से ऐतिहासिक गरिमा लिये हुए हैं । संगोतियों का क्रम कहने के लिए आगे भी चला, पर, उनकी कोई ऐसी विश्वेषता नहीं थी, जो उल्लेखनीय हो । आयोजित संगीतियों, उनके कारणों आदि के सम्बन्ध में पुन: समीक्षा आवश्यक है। बुद्ध कौशल के राजकुमार थे। मगध उनका मुख्य कार्य-क्षेत्र था। वे जीवन - पर्यन्त विशेषतः मगध में विचरण करते रहे। जो उन्हें उपलब्धि हुई थी, जन-जन को उससे परिचित कराने के लिए जब भी अवसरा होता, वे कुछ बोलते रहे। किसी प्रदेश का व्यक्ति यदि किसी दूसरे प्रदेश में रहता है, तो वह वहां उसी शिष्ट भाषा में बोलता है, जो उसके अपने प्रदेश में भी शिष्ट जनों द्वारा व्यवहृत होती है और उस प्रदेश में भी। ऐसी शिष्ट भाषा अन्तप्रान्तीयस्तर लिये हुए होती है। उदाहरणार्थ, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश तथा बिहार; ये सभी हिन्दी भाषी प्रान्त हैं। साहित्यिक स्तर और शिष्ट प्रयोग की दृष्टि से इन प्रदेशों के निवासियों की एक ही भाषा हिन्दी है, जिसका पुराना नाम खड़ी . बोली था। पर, इसके साथ-साथ इस अन्तरप्रान्तीय या शिष्ट-भाषा की अनेक बोलियां हैं, जो बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान के भिन्न-भिन्न भागों में बोली जाती हैं । एक मध्यप्रदेशी, उत्तरप्रदेशो या राजस्थानी किसी बिहारी के साथ बातचीत करने में उस हिन्दी या खड़ी बोली का उपयोग करेगा, जो दोनों प्रदेशों में शिक्षित जनों में समान रूप से व्यवहृत है। यही बात एक बिहारी के लिए भी है। वह भी यदि मध्यप्रदेश, राजस्थान या उत्तरप्रदेश में यहां के किसी व्यक्ति से बातचीत करेगा, तो उसका माध्यम हिन्दी होगा, न कि मध्यप्रदेश, राजस्थान या उत्तरप्रदेश की कोई एक क्षेत्रीय बोली। यद्यपि इन सभी प्रदेशों की क्षेत्रीय उपभाषाए या बोलियां हिन्दी की ही बोलियां कही जाती हैं, पर, वे Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy