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________________ भाषा और साहित्य ] पालि-भाषा और पिटक-वाङमय [ १९१ मागधी में अपना उपदेश दिया; अतः जिन भिक्षुओं ने उसे सुना, स्मृति में रखा। उसमें विशेष भिन्नता की आशंका तो नहीं की जानी चाहिए, फिर भी वे भिक्षु भिन्न-भिन्न प्रदेशों के निवासी थे, भिन्न-भिन्न प्रदेशों में धर्म सन्देश को प्रसृत करने के हेतु विहार करते थे; अतः उन-उन प्रदेशों की तथा अपनी बोली का प्रभाव पड़ना अनिवार्य था। मौलिक तथ्यों के सम्बन्ध में भेद नहीं हो सका, पर, वचनों के कलेवर या शाब्दिक स्वरूप में कुछ-न कुछ भेद अवश्य पड़ा होगा। ऐसी स्थिति में विभिन्न विशेषज्ञ स्मृतिधर भिक्षों को जैसा-जेसा स्मरण था, उसका अनुमेलन कर, एक सर्वसम्मत स्वरूप स्वीकार करके उसका सामूहिक रूप में उच्चारण, सस्वर या लयपूर्वक पाठ किया गया होगा । उसे संगान या संगीति इसलिए कहा गया होगा। वैदिक परम्परा में स्वर और लय पूर्वक वेद-पाठ का एक विशेष क्रम था ही। साम-गान आदि शब्द इसके द्योतक हैं। ऐसा अनुमान है कि बुद्ध वचन के स्वरूपसमन्वय या पाठ निर्णय के सन्दर्भ में एक साथ सम स्वर से उच्चारित किये जाने के कारण सम्भवतः संगान या संगोति शब्द का प्रयोग बौद्ध परम्परा में चल पड़ा हो । संगान-सम्यक् गान, संगीति-सम्यक् गीति का ऐसा अभिप्राय भी हो सकता है कि तन्मयता पूर्वक ओतप्रोत भाव से बुद्ध-वचनों का उच्चारण किया गया होगा । यह पद्यभाग और गद्यभाग दोनों के लिए लागू हो सकता है । प्रथम संगीति प्रथम संगीति या भिक्षुओं की पहली परिषद् भगवान् बुद्ध के परिनिर्वाण के चौथे मास में हुई । बुद्ध का परिनिर्वाण वैशाख शुक्ला पूर्णिमा को हुआ था। तदनुसार यह परिषद् सम्भवतः भाद्र मास में होनी चाहिए । सभी विनयधर एवं धम्मधर भिक्षुओं को आमन्त्रित किया गया । बौद्ध वाङमय के अनुसार इसमें पांच सौ भिक्षु सम्मिलित हुए थे; अतः इसे पंचशतिका के नाम से भी अभिहित किया जाता है। इसकी अध्यक्षता आयं महाकाश्यप ने की। भगवान् बुद्ध के निकटतम अन्तेवासो आनन्द भी इसमें उपस्थित थे। बौद्ध परम्परा में आनन्द के लिए 'धम्मवर विशेषण प्राप्त होता है। इससे सिद्ध होता है कि आनन्द धम्म ( धर्म ) के विशिष्टतम ज्ञाता थे । विनय के मर्मज्ञ महापति उपालि भी इस परिषद् में उपस्थित थे। उपालि के लिए बौद्ध वाङ्मय में 'विनयधर' विशेषण का प्रयोग हुआ है । विनय बौद्ध परम्परा का पारिभाषिक शब्द है, जिसका अर्थ मुख्यतः आचार-नियम है । उसी प्रकार धम्म का पारिभाषिक अर्थ धार्मिक सिद्धान्त है। उपालि बौद्ध आचार के परम वेत्ता थे। आयं महाकाश्यप ने आनन्द से धर्म के सम्बन्ध में तथा उपालि से विनय के सम्बन्ध में अनेक प्रश्न किये, जिनका उन्होंने जैसा तथागत से सुना था, उत्तर दिया। आयं महाकाश्यप के शब्दों में धम्मञ्च विनयंञ्च संगायेय्याम अर्थात् धर्म और विनय का संगान करें; सबके Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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