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१६२ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : २ समक्ष प्रस्ताव आया । भिक्षुओं ने धर्म और विनय का संगान किया । इसका यह आशय प्रतीत होता है कि आनन्द और उपालि ने जो उत्तर दिये, अन्यान्य स्मृतिमान् और मेघावी भिक्षुओं ने अपनी स्मृति के आधार पर उनका समर्थन किया होगा। कुछ परिष्कार, परिवर्तन, परिवद्धन आदि भी सुझाये गये होंगे। फिर तुलनात्मक और समन्वयात्मक रूप में सबके कथनों पर विचार करते हुए धम्म और विनय का स्वरूप निश्चित किया गया होगा। सबने स्वीकृत पाठ का समवेत स्वरूप से उच्चारण किया होगा । यही सुत्त-पिटक और विनय-पिटक का एक प्रकार से पहला संकलन है।
प्रथम संगीति की ऐतिहासिकता
बौद्ध परम्परा में इस संगीति की प्रामाणिकता निर्बाध है। चुल्ल वग्ग ( विनय-पिटक ), बीपवंस, महावंस, समन्तपासादिका (विनय-पिटक की बुद्धघोष-रचित अट्ठकथा ) की निदानकथा, महाबोधिवंस, महावस्तु और तिब्बती दुल्व में इस परिषद् का वर्णन है। यद्यपि वर्णन में थोड़ी-बहुत भिन्नता अवश्य है, पर, मूल स्थिति में अन्तर नहीं है। सभा बुलाये जाने के उद्देश्यों में पृथक-पृथक् वर्णनों में कुछ-कुछ अन्तर है, जिसका विशेष महत्व नहीं है। किसी ने वृद्ध भिक्षु सुभद्र के दुर्भाषित पर विशेष जोर दिया है, किसी ने इसका उल्लेख भी नहीं किया है और किसी ने कोई दूसरे साधारण कारण उपस्थित किये हैं।
धम्म और विनय के स्वरूप-निर्धारण में इसके अतिरिक्त किस-किस का कितना योगदान था, इस विषय पर भी विद्वानों में मत-भेद है । चुल्लवग्ग में इस सम्बन्ध में जो वर्णन है, उसके अनुसार समग्र कार्य आर्य महाकाश्यप, आनन्द और उपालि द्वारा हो सम्पादित हुआ। दीपवंस में जो वर्णन है, उसके अनुसार कतिपय अन्य भिक्षुओं का भी विशेष योगदान रहा। उन भिक्षुओं में अनिरुद्ध, बंगीश, पूर्ण, कात्यायन और कोट्टित आदि मुख्य थे। वस्तुतः इस संगीति में मुख्य भाग आर्य महाकाश्यप, आनन्द और उपालि का तो था ही, अन्य स्मृतिमान् भिक्ष भी सहायक बने; तभी तो इसने संगान का रूप लिया। अन्यथा संगान नहीं कहा जाता, केवल आयं महाकाश्यप, आनन्द और उपालि द्वारा किया गया बुद्ध-वचन का आवतंन मात्र होता।
बुद्धघोष का अभिमत
प्रथम संगीति में धम्म ( सुत) और विनय का संगान हुआ। इस समय प्राप्त सुत्तपिटक और विनय पिटक में वह कहां तक यथावत् रूप में है, इस पर आगे विचार किया जायेगा। अभिधम्म के संगान की प्रथम सगीति के सन्दर्भ में कहीं चर्चा नहीं मिलती।
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