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१८८ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशोलन
[ खण्ड :२ जो तात्विक उपदेश सम्बन्धी अनुक्रमणिकाओं को धारण करने वाले थे, उन्हें मातृकाधर कहा जाता था। अनुक्रमणिकाओं को ही मातृकाए कहा जाता था। आगे चल कर अभिधम्मपिटक का विकास उनसे ही हुआ। महावग्ग, चुल्लवग्ग ,दोध-निकाय तथा अंगुत्तरनिकाय आदि में एतत्सम्बन्धी उल्लेख हैं।
एक प्रश्न स्वाभाविक है कि त्रिपिटक में जो बुद्ध-वचन आज प्राप्त हैं, क्या वे भगवान् बुद्ध द्वारा दिये गये समस्त उपदेश हैं ? त्रिपिटक का भी स्वयं का ऐसा दावा नहीं है कि भगवान् बुद्ध ने जो कुछ कहा, वह सबका सब उनमें संगृहीत है। अनेक ऐसे भी वचन हो सकते हैं, जो तथागत के मुख से उच्चरित हुए, पर, कण्ठस्थ नहीं रखे जा सके हों। इसके साथ-साथ यह भी समीक्षणीय है कि त्रिपिटक में जो कुछ है, क्या वह अक्षरशः बुद्ध-वचन ही है। त्रिपिटक के लेखन से पूर्व हुए उनके संकलन पर कुछ विचार अपेक्षित है, जिससे ये तथ्य स्वयं स्पष्ट हो जायेंगे।
त्रिपिटक का संकलन
भगवान् बुद्ध के परिनिर्वाण के तीन मास बाद राजगृह में वेभार पर्वत के उतरी पाश्र्व में स्थित सप्तपर्णी गुफा में बौद्ध भिक्षुओं को सभा हुई, जिसका उद्देश्य बुद्ध-वचनों का संगानसंकलन या संग्रह था। बुद्ध के परिनिर्वाण के केवल तीन मास बाद ही ऐसा क्यों आवश्यक प्रतीत हुआ कि बुद्ध के वचन संगृहीत किये जाए ? बुद्ध एक प्रजातान्त्रिक व्यवस्था से आये थे। उन्होने अपने भिक्षु-संघ में उसी प्रकार की व्यवस्था की। उन्होंने कोई उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया और न अपने संघ के भिक्षुओं को किसी उत्तराधिकारी के निर्वाचन के लिए आदिष्ट ही किया। धर्म-संघ पर व्यक्ति विशेष के शासन में सम्भवतः उनकी आस्था न रही हो। उनके द्वारा उपदिष्ट धर्म और विनय ही भिक्षु-संघ की शासन-व्यवस्था का आधार रहे, इस प्रकार का उनका आशय था।
एक प्रसंग है, गोपक मोग्गलान ने आनन्द से प्रश्न किया- "भद्र आनन्द ! क्या कोई एसा भिक्षु है, जिसे तथागत ने यह कहते हुए कि मेरे निर्वाण के अनन्तर यह तुम लोगों का आधार होगा, इसका तुम सहारा लोगे, मनोनीत किया ?"
आनन्द का उत्तर था-"कोई ऐसा श्रमण या ब्राह्मण नहीं है, जिसे पूर्णत्व प्राप्त, स्वयंबोधित भगवान् ने यह कहते हुए कि मेरे निर्वाण के अनन्तय यह तुम लोगों का सहारा होगा, जिसका अवलम्बन हम लोग ले सके, मनोनीत किया।"
गोपक मोग्गलान ने पुनः पूछा-"पर, क्या आनन्द ! ऐसा कोई भिक्षु है, जिसे संघ ने स्वीकार किया हो और अनेक बुद्ध भिक्षओं द्वारा जिनके सम्बन्ध में यह कहते हुए व्यक्त किया
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