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________________ और साहित्य ] पालि 5- वाङ मय 1 पालि भाषा और पिटक - वाङ्मय पालि का सबसे प्राचीन वाङमय त्रिपिटक के रूप में प्राप्त है । त्रिपिटक का अर्थं तीन पिटारियां हैं । ऐसा अनुमान करना असंगत नहीं लगता कि भगवान् बुद्ध के वचन संगृहीत किये जाने पर पृथक्-पृथक् विषयों के अनुसार तीन पिटारियों में रखे गये होंगे। कुछ समय पश्चात् वह वाङ्मय अलग-अलग तीन पिटकों के रूप में प्रसिद्ध हो गया । [ १८७ ईसा से पांच सौ वर्ष पूर्व का समय भारत में आध्यात्मिक व धार्मिक दृष्टि से क्रान्ति का समय था । ये क्रान्तियां पूर्वी भारत में हुई । ऐसा लगता है, यज्ञ-प्रधान वैदिक संस्कृत और धार्मिक परम्परा वहां जन मानस को सम्भवतः अधिक परितुष्ट नहीं बनाये रख सकी होगी। लोक-मानस में कुछ ऐसी मांग रही होंगी, जिसका अभिप्रेत शान्ति का मार्ग प्राप्त करना था । फलतः महावीर और बुद्ध के रूप में दो महान् क्रान्तिकारी व्यक्तित्वों का उदय एक ही समय में हुआ यद्यपि अवैदिक परम्परा के और भी कतिपय क्रान्तिकारी आचार्य थे, जिनके सम्बन्ध में पहले इंगित किया गया है, पर, वर्तमान में उनका कोई भी साहित्य प्राप्त नहीं है । केवल भगवान् महावीर तथा तथागत बुद्ध का साहित्य मिलता है । Jain Education International 2010_05 तब स्मृति में रखने की विशेष भगवान् बुद्ध ने उपदेशों के माध्यम के रूप में लोक भाषा को स्वीकार किया । उन्होंने जन-जन को अपने सन्देशों से आप्लावित करने के लिए जीवन और धर्म के तत्व-ज्ञान पर बहुत कुछ कहा । उनके सम्पर्क में लोग आते थे, उनसे प्रश्न पूछते थे । वे उनका उत्तर देते थे । अनेक धर्म-परिषदें होती थीं, जिनमें वे प्रवचन करते थे । सहस्रों लोग उनके प्रवचनों का श्रवण करते थे । बुद्ध का अपनी स्वयं की साधना के साथ-साथ यावज्जीवन यह लोक-कल्याण का क्रम गतिशील रहा । तथागत के वे सभी उपदेश मौखिक थे । उनके समय में उनके उपदेशो का लेखन नहीं हुआ । यद्यपि उस समय लेखन कला या लिपि ज्ञान अनधिगत नहीं था, पर ऐसा लगता है, धर्मोपदेश को परम्परा थी । प्रश्न उपस्थित होता है कि यदि लेखन कला इसके लिए कोई सन्तोषजनक समाधान तो नहीं मिलता, पर है कि जिस तरह वैदिक परम्परा में वेदों को कण्ठाग्र रखने की एक विशेष प्रवृत्ति थी, सम्भवतः बुद्ध के वचनों के लिए भी यही प्रवृत्ति रही हो । बुद्ध वचनों को धारण करने वाले refभक्षु । इसका अर्थ यह हुआ कि बुद्ध जब-जब बोलते, तीव्र स्मृति के धनी भिक्षु उन्हें कण्ठस्थ कर लेते । ऐसे भिक्षुओं के लिए विनयधर, धम्मधर, सुत्तन्तिक; मातृकाधर आदि विशेषण प्राप्त होते हैं । जो भिक्षु विनय-पिटक या विनय अथवा आचार-सम्बन्धी वचनों की धारण करने वाले थे; वे विनयधरा कहलाते थे । इसी प्रकार जो धर्म या धर्मंसिद्धान्त अथवा सुत-पिटक को धारण करने वाले थे, वे धम्मघर या सुत्तन्तिक कहलाते थे । ज्ञात थी, तो ऐसा क्यों ? इतना अवश्य कहा जा सकता For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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