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भाषा और साहित्य ] पालि भाषा ओर पिटक-बाङ्मय [ १६७ सधती है। इस व्युत्पत्ति का किंचित् विस्तार और हो सकता है-प्रपट > पाड > पाअल > पाल > पालि। प्राकृत शब्द से की जाने वाली व्युत्पत्ति की तरह यह व्युत्पत्ति भी विशेष सार्थक नहीं है; अतः विद्वानों की दृष्टि में इसका प्रामाण्य नहीं है। प्रकट शब्द और पालि शब्द को अर्थ-संगति भी नहीं बनती। कष्ट कल्पना द्वारा चाहे जो किया जाये।
पालेय : प्रालेयक : पालि
कुछ विद्वानों ने प्रालेय या प्रालेयक शब्द के साथ पालि का सम्बन्ध जोड़ने या उसकी व्युत्पत्ति बताने का प्रयास किया है । प्रालेय या प्रालयक शब्द के कई अर्थ हैं, जिनमें एक पर्वत या हिमाच्छादित पर्वत भी है। पर, इस मत की चर्चा करते हुए डा. भोलानाथ तिवारी और डा० भरतसिंह उपाध्याय ने प्रालेय या प्रालेयक का अर्थ पड़ोसी लिखा है। प्रचलित अर्थ तो ऐसा प्रतीत नहीं होता। मगध के पास के ( उत्तर के ) पर्वतीय भाग की भाषा या मगध के ही पर्वतीय भाग ( राजगृह आदि ) की भाषा; इस प्रकार दूरान्वित संगति करते हुए प्रालेय > पालेय > पालि; इस तरह की व्युत्पत्ति की कल्पना की जा सकती है। पर, यह तथ्यपरक नहीं है।।
समीक्षा
पालि की व्युत्पत्ति या विकास के सन्दर्भ में अनेक विद्वानों के विचारों का समीक्षात्मक दृष्टि से चिन्तन अपेक्षित है । बौद्ध वाडमय में अभिधान दीपिका नामक एक प्रसिद्ध कोशग्रन्थ है। उसमें पालि शब्द के अर्थ पर विचार किया गया है। वहां पालि शब्द को तन्तितन्त्र, बुद्ध-वचन और पंक्ति का अर्थ-बोधक मानते हुए उनकी व्युत्पत्ति की गई है। वहां लिखा गया है कि जो पालन करती है, रक्षा करती है, वह पालि है। आगे प्रश्न उपस्थित किया गया है कि किसका पालन करती है ? किसकी रक्षा करती है ? इसका उत्तर देते हुए वहां लिखा गया है-"अत्थं पाति" अर्थात् अर्थ की रक्षा करती है, बुद्ध-वचनों की रक्षा करती है । पालि ने बुद्ध-वचनों का किस प्रकार पालन किया ? किस प्रकार उनकी रक्षा १. (क) प्रालेय = हिम, कुहरा, ओस, तुषार, अद्रि, शैल, हिमाच्छादित पहाड़, हिमालय,
रश्मि, चन्द्रमा, कपूर, ओला। -संस्कृत-हिन्दी-कोश, पृ० ६९२, वामन शिवराम आप्टे।
(ख) Hail, Snow, Frest, dew, snow-mountain, Hima-vat, frosty___rayed, the moon.
-Sanskrit-English Dictionary, P. 702, by Sir Monier Williams. Jain Education International 2010_05
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