________________
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : २ क्या पाटलि नाम की कोई भाषा रही है ? जितना भी साहित्य उपलब्ध है, कहीं भी उसमें किसी भाषा विशेष के लिए पाटिल शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है। यदि पाटिलपुत्र क्षेत्र की भाषा इस नाम से प्रसिद्ध होती, तो कहीं-न-कहीं उसका उल्लेख अवश्य होता । वस्तुतः डा० मैक्सवेलसेर का मत किसी प्रबल पृष्ठभूमि पर नहीं टिका है। अतएव यह मत विद्वत्समाज में आदृत नहीं है। इसमें ऐतिहासिक सत्य के स्थान पर हा० मैक्सवेलसेर का कल्पना-पटुत्व या बुद्धि-वैचित्र्य ही अधिक प्रतीत होता है। डा. थामस ने इस मत का अनेक युक्तियों द्वारा प्रतिवाद किया है।
कुछ विद्वानों ने पालि शब्द को पल्लि से जोड़ने का प्रयत्न किया है। संस्कृत में पल्लि का अर्थ छोटा गांव, झोपड़ी, घर या पड़ाव है। उन्होंने उसे पल्लि की भाषा या गांव की भाषा बताना चाहा है। इस प्रकार इसे जन-साधारण की भाषा से जोड़ने का उनका भाव अनुमित होता है । सम्भवतः उन्होंने पल्लि से पाल्लि और पाल्लि से इसके पालि के रूप में विकसित होने की उद्भावना की। यह भी एक मात्र काल्पनिक-सा कथन है। इतिहास और परम्परालभ्य प्रमाणों का कोई आधार इसके साथ नहीं है । फलतः विद्वज्जगतू में इसे मान्यता नहीं मिली।
भण्डारकर और वाकेटनागल
भण्डारकर और वाकेटनागल के मतानुसार पालि सबसे पुरानी प्राकृत है; अतः पालि शब्द प्राकृत से ही बना है। जैसे-प्राकृत > पाकट > पाअड > पाअल > पालि । इसे कुछ और परिष्कृत रूप में उपस्थित किया जाये, तो पालि तक विकास होने में एक रूप का व्यवधान और भी हो सकता है। जैसे-प्राकृत > पाकट > पाअड > पाल > पाल > पालि। यह व्युत्पत्ति भी वास्तविक कम और मानुमानिक अधिक है। प्राकृत से वास्तव में कोई एक भाषा नहीं समझी जाती। उसके प्रादेशिक दृष्ट्या कई भेद हैं। पालि उसके किसी एक भेद पर आधृत है; इसलिए उस भेद के साथ शाब्दिक सम्बन्ध जाड़े जाने का प्रयास किया जाता, तो एक बात थी। पर, सीधे प्राकृत से उसका शाब्दिक सम्बन्ध जोड़कर एक कल्पित विकास-क्रम का स्वरूप उपस्थित करना ऐतिहासिक और वैज्ञानिक तथ्यों से शून्य है।
राजवाडे
राजवाडे ने पालि का सम्बन्ध संस्कृत के 'प्रकट' शब्द से जोड़ने की कल्पना की है। तवनुसार प्रकट > पाअड> पामल > पालि; इस प्रकार पालि शब्द की व्युत्पत्ति
1. Indian Historical Quarterly, December 1928, P. 429-30.
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org