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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : २ की ? वहां एक उत्तर है कि त्रिपिटक के रूप में उनका संकलन कर उनकी रक्षा की। साथ-ही-साथ दूसरा उत्तर है कि बौद्ध धर्म के परम भक्त और उन्नायक लंकानरेश वट्टगामणि के समय में त्रिपिटक को लेख-बद्ध कर उनकी रक्षा की। पालि बुद्ध-वचन भी है और पालि पंक्ति भी है। त्रिपिटक के संकलन के रूप में पालि बुद्ध-वचन है और उनकी लेख-बद्धता की अपेक्षा से पालि पंक्ति है। अभिधानदीपिकाकार ने पालि शब्द का जो निर्वचन किया है, वह उसके इतिहास की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। एक बहुत महत्व की बात वहां छूट गयी है। परियाय शब्द पर अभिवान-दीपिकाकार ने कोई विशेष चर्चा नहीं की। उन्होंने वहां केवल उसका पर्यायपायो "बुद्ध-वचन" शब्द ही दे दिया है। ऐसा हो सकता है कि पालि शब्द का निर्वचन करते समय परियाय और पालि को भाषा वैज्ञानिक संगति की ओर उनका ध्यान न गया हो। -भाषा के अर्थ में पालि के प्रयोग के सन्दर्भ में पिछले पृष्ठों में पूर्व विहित चर्चा से स्पष्ट है कि पालि शब्द का प्रयोग १४वीं शती तक कहीं भी उस भाषा के अर्थ में नहीं किया गया, जिसमें बुद्ध-वचन हैं। स्पष्ट रूप में नहीं कहा जा सकता कि भाषा के लिए यह शब्द किस प्रकार प्रयोग में आने लगा। डा० भरतसिंह उपाध्याय ने इस सम्बन्ध में ऐसा मत ध्यक्त किया है-"पहले 'तन्ति' शब्द का प्रयोग मूल त्रिपिटक या उसके किसी ग्रन्थ के लिए पालि के अर्थ में होने लगा, यथा 'विनय-तन्ति' अर्थात् 'विनय पालि'। बाद में तिपिटक की भाषा को घोतित करने के लिए सिंहल में तन्ति-भाषा' जैसा सामासिक शब्द प्रचलित हुमा । उसी का समानार्थवाची शब्द 'पालि-भाषा' भी बाद में प्रयुक्त होने लगा। पालिभाषा' अर्थात् पालि ( बुद्ध-वचन ) की भाषा। बाद में स्वयं पालि शब्द ही भाषा के लिए प्रयुक्त होने लगा। आज 'पालि' से तात्पर्य उस भाषा से लिया जाता है, जिसमें स्थघिरबाद बौद्ध धर्म का लिपिटक और उसका सम्पूर्ण उपजीधी साहित्य रक्खा हुआ है।" - डा० उपाध्याय ने जो क्रम प्रस्तुत किया है, वह बहुत महत्वपूर्ण है। तन्ति-भाषा या पालि-भाषा का जो प्रयोग बौद्ध साहित्य में होने लगा था, वह एक आधार है, जो पालि के वतमान अर्थ को संगति प्रदान करता है । डा० उपाध्याय ने स्पष्ट किया है, तन्ति-भाषा या पालि-भाषा का अर्थ था, बुद्ध के वचनों की भाषा। यह बात सम्भावित प्रतीत होती है कि आगे चल कर भाषा शब्द सहज ही हट गया हो और मात्र पालि' शब्द बच पाया हो । पालि को अाधारभुत भाषा ... पालि की माधारभूत भाषा कोन सी थी, इस सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। जिस १. पालि साहित्य का इतिहास, पृ० १० Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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