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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : २
भिक्षु सिद्धार्थ
..' भिक्ष सिद्धार्थ ने पालि शब्द का सम्बन्ध पाठ शब्द से बताया है। उनका मन्तव्य है कि वैदिक परम्परा में पाठ शब्द का विशेष महत्व रहा है। वस्तुतः संहिता-पाठ, पद-पाठ, क्रम-पाठ, जटा-पाठ और धन-पाठ के रूप में वेदों के पाठ की एक वैज्ञानिक परम्परा थी। भिक्ष सिद्धार्थ का प्रतिपादन है कि बुद्ध के समय में भी वेद-पाठी ब्राह्मणों में पाठ शब्द का प्रचलन था। बुद्ध के धर्म-संघ में जहां क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र प्रविष्ट हुए, वहां अनेक ब्राह्मण भी उसमें सम्मिलित हुए। किसी भी जाति या वर्ग में एक संस्कार होता है, जो धार्मिक आस्था के बदलने के बाद भी बदल नहीं पाता। बौद्ध धर्म में दोक्षित ब्राह्मण जिस प्रकार वेद-वाक्यों के लिए पाठ शब्द का प्रयोग करते रहे थे, बुद्ध-वचनों के लिए भी उन्होंने पाठ शब्द का प्रयोग करना आरम्भ कर दिया।
बुद्ध के लिए जहां उनके श्रद्धालु अन्तेषासियों और अनुयायियों द्वारा और अनेक विशेषण दिये गये, वहां उनके लिए वेदज्ञ, वेदान्तश जैसे विशेषण भी प्राप्त होते हैं। ये विशेषण बहुत सम्भव है, ब्राह्मण-परम्परा से आने वाले अन्तेवासियों ने श्रद्धाभिनत होकर प्रयुक्त किये हों। अन्य भी ऐसे शब्दों को भिक्षु सिद्धार्थ ने प्रस्तुत किया है, जो मूलतः वैदिक परम्परा से सम्बद्ध थे, पर, बाद में नये स्वरूप के साथ बौद्ध संघ में स्वीकृत हो गये । उदाहरणार्थ, संहिता, तन्त्र और प्रवचन वैदिक परम्परा के शब्द हैं। बौद्ध संघ में संहिता के स्थान पर सहित, तन्त्र के स्थान पर तन्ति और प्रवचन के स्थान पर पावचन हो गया। ऐसी स्थिति में पाठ शब्द भी यदि बौद्ध संस्करण प्राप्त कर ले, उसे असम्भव नहीं कहा जा सकता। पालि-व्याकरण का नियम है कि सभी मूद्धन्य व्यंजन ( ट , , , , ण् ) पालि में ळ हो जाते हैं। भिक्ष सिद्धार्थ का कहना है कि इसी नियम के अनुसार पाठ का पाळ हो गया। वही आगे चलकर पाळि के रूप में परिवर्तित हो गया। भाषाविज्ञान की दृष्टि से तो ऐसा होना असम्भव नहीं कहा जा सकता; क्योंकि पालि और प्राकृत में अन्त्य-स्वर-परिवर्तन का क्रम देखा जाता है। पालि शब्द में जो ल व्यंजन है, वह अन्तःस्थ ल नहीं है, अपितु वैदिक भाषा में व्यवहृत मूद्धन्य ळ. ध्वनि के समकक्ष है। आधुनिक भाषाओं में से कुछ में यह ध्वनि लुप्त हो गयी। कुछ में इसका 'ड' के रूप में विकास हो गया। सूक्ष्मता में न जा कर ळ. और लू के उच्चारण में भेद किये जाने की स्थिति न रही, वहां मिथ्या सादृश्य के आधार पर पालि शब्द को पाळि के साथ मिला दिया गया। ऐसा होने पर पाळि के स्थान पर पालि शब्द का बुद्ध-वचन के लिए व्यवहार चल पड़ा।
भिक्ष सिद्धार्थ ने पालि के विकास का जो इतिहास और क्रम प्रस्तुत किया है, भाषा
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