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१६२ । आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : २ में रचे गये चूलवंस में भी पालि शब्द का प्रयोग बुद्ध-धवन के अर्थ में हुआ है । चूलवंस महावंस (५वीं शती) का उत्तरकालीन परिवद्धित अंश है। उसके अनन्तर १४वीं शती में रचित सद्धमसंगह में भी पालि शब्द को उसी अर्थ में प्रयुक्त किया गया है।
चौथी शती से १४वीं शती तक पालि शब्द बुद्ध-वचन या त्रिपिटक के पाठ के रूप में व्यवहत होता रहा है। चौथी शती से पूर्व के पिटक-साहित्य और तदुपजीवी साहित्य में पालि शब्द का प्रयोग बुद्ध वचन के अर्थ में नहीं प्राप्त होता; अतः यह विचारणीय है कि भाचार्य बुद्धघोष ने पालि शब्द का उपयोग मूल त्रिपिटक या त्रिपिटक-पाठ के अर्थ किस माधार पर किया ? वह कौन-सी परम्परा थी, जिसका अवलम्बन दीपवंसकार और आचार्य बुद्धघोष ने लिया, इस पर विशेष रूप से विचार किया जाना अपेक्षित है। शब्दों की ध्वनियों, रूपों व अर्थ का संकोच, विकास, परिवर्तन आदि अकस्मात् नहीं होते। उनके पीछे भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से एक कारण-परम्परा रहती है, जिसका बाह्य रूप स्पष्ट नहीं दीखता, पर, गवेषणा करने पर उसका ओर-छोर मिल जाता है । पालि सब्द की व्याख्या विश्लेषण ___भारतीय विद्या ( Indology ), विशेषत: संस्कृत, पालि, प्राकृत पर विशेष कार्य करने पाले कतिपय विद्वानों ने पालि शब्द का अनेक प्रकार से व्याख्यान-विश्लेषण करने का प्रयत्न किया है। संस्कृत में पालि शब्द का अर्थ क्ति है। पं० विधुशेखर भट्टाचार्य ने इसी अयं को मुख्यता देते हुए पालि शब्द की बुद्ध-वचन या त्रिपिटक-पाठ के साथ अर्थ-संगति करने का प्रयत्न किया है। पालि धामय में पानि शब्द बुद्ध-धचन के साथ-साथ पंक्ति अर्थ में भी प्रयुक्त हुआ है। श्री भट्टाचार्य ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा है कि पंक्त्यर्थक पालि शब्द आगे चल कर अन्य की पंक्ति के अर्थ में स्वीकार कर लिया गया। यही कारण है कि दीपवंसकार और प्राचार्य बुद्धघोष ने त्रिपिटक या त्रिपिटक-पाठ के अर्थ में इसे अपना लिया । श्री भट्टाचार्य पंक्ति शब्द पालि शब्द तक पहुंचने का क्रम इस प्रकार मानते हैं : पंक्ति> पन्ति > पत्ति> पट्ठि> पल्लि>पालि ।
विद्वानों ने इस मत पर विशेष ऊहापोह किया है। भिक्षु जगदीश काश्यप ने पालिमहाव्याकरण 1 में इस मत की समीक्षा की है । उन्होंने इसमें तीन प्रकार की असंगतियों का उल्लेख किया है। पालि या पंक्ति का ग्रन्थ की पंक्ति अर्थ किया जाना उन्हें संगत नहीं लगा। उनका कथन है कि पंक्ति लिखित ग्रन्थ की होती है। पिटक ई० पू० प्रथम शती से पहले लेख-बद्ध नहीं हुए थे; अतः उस समय अर्थात् ई० पू० प्रथम शती से पहले त्रिपिटक के पाठ के लिए ग्रन्थ-पंक्ति की कल्पना संगत नहीं हो सकती। पालि शब्द को पंक्ति-अर्थ में
१. पालि-महाव्याकरण, पृ० ८ ( वस्तुकथा )
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