SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाषा और साहित्य ] मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाएं [१४९ विभक्ति में एकवचन में ( अकारान्त शब्दों में ) आ प्रत्यय होता है। जैसे—देवात् = देवा, नरात् = णरा, धर्मात् = धम्मा; आदि । वैदिक वाङमय में भी इस प्रकार के कतिपय पंचम्यन्त रूप प्राप्त होते हैं । जैसे—उच्चात् = उच्चा, नीचात् = नीचा, पश्चात् = पश्चा। प्राकृत में पंचमी विभक्ति बहुवचन में भिस्1 के स्थान पर हि आदि होते हैं। जैसेदेवेहिः आदि। वैदिक संस्कृत में भी इसके अनुरूप देवेभिः, ज्येष्ठेभिः; गम्भीरेभिः आदि रूप प्राप्त होते हैं। ___ प्राकृत में एकवचन और बहुवचन ही होते हैं, द्विवचन नहीं होता। वैदिक संस्कृत में वचन तो तीन हैं, पर इस प्रकार के अनेक उदाहरण मिलते हैं, जहां द्विधचन के स्थान पर बहुवचन के रूपों का प्रयोग हुआ है। जैसे—इन्द्रावरुणौ = इन्द्रावरुणा:, मित्रावरुणौ = मित्रावरुणा:, नरौ = नरा, सुरथौ = सुरथाः, रथितमौ = रथितमाः । वर्तमान युग के प्राकृत के महान् जर्मन वैयाकरण डा. पिशल ने विशाल ग्रन्थ Compara. tive grammar of the Prakrit Language में संस्कृत से प्राकृत के उद्गम का खण्डन करते हुए प्राकृत तथा वैदिक भाषा के सादृश्य के द्योतक कतिपय उदाहरण प्रस्तुत किये हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं : त्वन प्राकृत भाषा वैदिक भाषा त्तण स्त्रीलिंग षष्ठी के एकवचन का रूप 'आए' आये तृतीया बहुवचन का रूप एहि एभिः बोहि ( आज्ञावाचक ) बोधि ता, जा, एत्थ तात, यात्, इत्था अम्हे अस्मे बग्गूहिं वग्नुभिः १. भिसो हि हि हिं ॥ ३ । १७ अतः परस्य भिसः स्थाने केवलः सानुनासिकः, सानुस्वारश्च हिर्भवति । -सिद्धहैमशब्दानुशासनम् 2. ......This sanskrit was not the baris of the Prakrit dialects, which indeed dialect, which, on political or religions grounds, was rained to the states of a literary medium, But the difficulty is that it does not seem useful that all the Prakrit dialects sprang out from one and the same source, At least they could not have Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy