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________________ १४८ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : २ संहिता ३.३६ ), पुरोदास = पुरोडाश ( शुक्ल यजुः प्रातिशाख्य ३. ४४ )। प्राकृत में संस्कृत के ख, घ, थ तथा भ को तरह ध का भी ह' होता है । जैसे-साधु: = साहु, वधिरः = बहिरो, बाधते = बाहइ, इन्द्रधनुः = इन्दहणू, सभा = सहा। वैदिक वाङमय में भी ऐसा प्राप्त होता है। जैसे—प्रतिसंधाय = प्रतिसंहाय ( गौपथ ब्राह्मण २. ४ ) प्राकृत ( मागधी को छोड़ कर प्रायः सभी प्राकृतों ) में अकारान्त पुल्लिंग शब्दी के प्रथमा विभक्ति के एकवचन में घो' होता है। जैसे—मानुषः = माणसो, धर्मः = धम्मो। एतत् तथा तत् सर्वनाम में भी विकल्प से ऐसा होता है। जैसे--सः = सो, एषः = एसो। वैदिक संस्कृत में भी कहीं-कहीं प्रथमा एकवचन में बो दृष्टिगोचर होता है। जैसेसंवत्सरौ अजायत ( ऋग्वेद संहिता १०.१६०.२ ) सो चित् ( ऋग्वेद संहिता १. १६१ - संस्कृत अकारान्त शब्दों में सि' (पंचमी) विभक्ति में जो देवात्, नरात, धर्मात् आदि रूप बनते है, उनमें अन्त्य त् के स्थान पर प्राकृत में छः आदेश होते हैं। उनमें एक त का लोप भी है। लोप के प्रसंग को इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि पंचमी १. ख - घ - 2 - ध भाम् ॥८।१।१८७ स्वरात्परेषामसंयुक्तानामनादिभूतानां ख घ थ ध भ इत्येतेषां वर्णानां प्रायो हो भवति । -वही २. अतः सेझैः ॥ ८।३।२। अकारान्तान्नामः परस्य स्यादे: सेः स्थाने डो भवति। - वही ३. वेतत्तदः । ८ । ३ । ३ एतत्तदोरकारात्परस्य स्यादेः सेझै भवति। -वही ४. स्वौजसमौट्छष्टाभ्यांभिसङ भ्यांभ्यसङसिभ्यांभ्यस्ङ सोसाम्ङ योस्सुप्। -अष्टाध्यायी ४।१।२ सु औ जस् इति प्रथमा । अम् औट शस् इति द्वितीया । टा भ्यां भिस् इति तृतीया। हु म्यां भ्यस् इति चतुर्थी । इसि भ्यां भ्यस् इति पंचमी । उस औस आम् इति षष्ठी । ङिऔ स सुप् इति सप्तमी। ५. डसेस् त्तौ - दो - दु - हि - हिन्तो - लुकः ॥ ३।१।८ . अतः परस्य उसेः तौ दो दु हि हिन्तो लुक् इत्येते षडादेशा भवन्ति । जैसे-वत्सात् = वच्छतो, वच्छाओ. वच्छाउ, वच्छाहि, वच्छाहिन्तो वच्छा। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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