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भाषा और साहित्य ] मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाए [ १४७ वैदिक वाङमय में भी प्राप्त होती है। जैसे, ऋग्वेद १. ४६. ४ में कृत के स्थान पर कुठ का प्रयोग है। अन्य भी इस प्रकार के प्रयोग प्राप्य हैं।
प्राकृत में अन्त्य व्यंजन का सर्वत्र लोप होता है। जैसे-यावत् = जाव, तावत् = ताव, यशस् = जसो । तमस् = तमो। वैदिक साहित्य में यत्र-तत्र ऐसी प्रवृत्ति दृष्टिगोचर होती है। जैसे-पश्चात् के लिए पश्चा ( अथर्ववेद संहिता १०.४.११ ), उच्चात् के लिए उचचा ( तैत्तिरीय संहिता २.३.१४ ), नीचात् के लिए नीचा ( तैत्तिरीय संहिता ४ ५.६१ )।
प्राकृत में संयुक्त य, र, ७, श, ष, स् का लोप हो जाता है और इन लुप्त अक्षरों के पूर्व के हस्व स्वर का दीर्घ' हो जाता है। जैसे—पश्यति = पासइ, कश्यपः = कासवो, आवश्यकम् = आवसय, श्यामा = सामा, विश्राभ्यति = वीसमइ, विश्रामः = विसामो, मिश्रम् = मीसं, संस्पर्श: = संफासो, प्रगल्भ = पगल्भ, दुर्लभ = दुलह । पैदिक भाषा में भी इस कोटि के प्रयोग प्राप्त होते हैं। जैसे-अप्रगल्भ = अपगल्भ ( तैत्तिरीय संहिता ४.५.६१ ), त्र्यच = त्रिच ( शतपथ ब्राह्मण १.३.३.३३ ), दुर्लभ = दूलभ ( ऋग्वेद ४.६.८) दुर्णाश = दूणाश ( शुक्ल यजुः प्रातिशाख्य ३.४३ )।
प्राकृत में संयुक्त वर्गों के पूर्व का दीर्घ स्वर ह्रस्व हो जाता है। जैसे, ताम्रम् = तम्बं, विरहाग्निः = विरहग्गी, आस्यं = अस्सं, मुनीन्द्रः = मुणिन्दो, तोर्थम् = तित्थं, चूर्णः = चुण्णौ; इत्यादि । वैदिक संस्कृत में भी ऐसी प्रवृत्ति प्राप्त होती है। जैसे-रोदसीप्रा = रोदसिप्रा (ऋग्वेद १०.८८.१०), अमात्र = अमत्र ( ऋग्वेद ३.३६.४ )। - प्राकृत में संस्कृत द के बदले अनेक स्थानों पर ड4 होता है। जैसे-दशनम् = डसणं, दृष्टः = डट्ठो, दग्धः = डड्ढ़ो, दोला = डोला, दण्ड = डण्डो, दरः = डरो, दाहः = डाहो, दम्भ = डम्भो, दर्भः = डब्भो, कदनम् = कडणं, दोहदः = डोहलो। वैदिक संस्कृत में भी यत्र-तत्र इस प्रकार की स्थिति प्राप्त होती है। जैसे-दुर्दभ = दूडभ ( वाजसनेय
१. अन्त्यव्यंजनस्य । ८ । १ । ११
"शब्दानां यद् अन्व्यंजनं तस्य लुग भवति। -सिद्धहैमशब्दानुशासनम् २. लुप्त य - र - व - श - ष - सां दीर्घः ॥ ८।१। ४३
प्राकृतलक्षणवशाल्लुप्ता याद्या उपरि अधो बा येषां शकारषकारसकाराणां तेषामादे: स्वरस्य दीर्धा भवति ।
-वही ३. हस्वः संयोगे ॥८।१।८४
दीर्घस्य यथादर्शनं संयोगे परे ह्रस्वो भवति । -वही ४. दशन - दष्ट - दग्ध - दोला - दण्ड - दर - दाह - दम्भ - दर्भ - कदन - दोहदे दो वा
डः ॥ ८।१। २१७ एषु दस्य डो वा भवति।
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