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________________ भाषा और साहित्य ] मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाएं [ १३१ पं० हरगोविन्ददास टी० सेठ का यह विभाजन प्राकृत के भेदों पर विस्तार से प्रकाश डालता है। प्राकृत के नाम-नामान्तर प्राकृत के लिए पाइय, पाइअ, पाउय, पाउड, पागड, पागत, पागय, पायम, पागय, पायड जैसे अनेक नाम प्राप्त होते हैं । जैन अंग-साहित्य के तोसर अंग स्यानांग सूत्र में पागत शब्द व्यवहृत हुआ है। क्षमाश्रमण जिनभद्रगणिकृत विशेषावश्यक भाष्य की टीका में भाचार्य हेमचन्द्र ने पागय शब्द का प्रयोग किया है। राजभेखर द्वारा रचित कपूरमंजरी नामक सट्टक में पाउअ शब्द आया है। वाक्पतिराज ने गउडवहो नामक प्राकृत-काव्य में पायय शब्द का प्रयोग किया है। ये सभी शब्द प्राकृत के अर्थ में हैं। नाट्यशास्त्र के रचयिता आचार्य भरत ने नाट्यशास्त्र में प्राकृत के नाम से इस भाषा को अभिहित किया है। प्राकृत को उत्पति-झोत ___ भाषा-ज्ञानिक साधारणतया ऐसा मानते आ रहे हैं कि आर्य भाषाओं के विकास-क्रम के अन्तर्गत वैदिक भाषा से संस्कृत का विकास हुआ और संस्कृत से प्राकृत का उद्भव हुआ। इसीलिए भाषा वैज्ञानिक इसका अस्तित्व संस्कृत-काल के पश्चात् स्वीकार करते हैं। इस सम्बन्ध में विस्तार से विवेचन अपेक्षित है। वैयाकरणों की मान्यतारा सुप्रसिद्ध प्राकृत घेयाकरण भाचार्य हेमचन्द्र ने प्राकृत की परिभाषा करते हुए कहा है: "प्रकृतिः संस्कृतम्, तत्र भवं तत आगत वा प्राकृतम्"-प्रकृति संस्कृत है; यहां होने वाली या उससे आने वाली भाषा प्राकृत है। मार्कण्डेय ने प्राकृत-सर्वस्व में प्राकृत का "प्रकृति : संस्कृतम्, तत्र भवं प्राकृतमुच्यते"---प्रकृति संस्कृत है, वहां होने वाली भाषा अर्थात् उससे निष्पन्न होने वाली भाषा प्राकृत कही जाती है, ऐसा लक्षण किया है। प्राकृत-चन्द्रिका में "प्रकृतिः संस्कृतम्, तत्र भवत्वात् प्राकृतं स्मृतम्"-प्रकृति संस्कृत है, वहीं होने से या उससे उद्भूत होने से यह भाषा प्राकृत कही गयी है, ऐसा उल्लेख किया गया है। नरसिंह ने १. स्थानांगसूत्र, स्थान ७, सूत्र ५५३ २. विशेषावश्यक भाष्य, गाथा १४६६ की टीका ३. कर्पूर मंजरी, जवनिका १, श्लोक ८ ४. गउडवहो, गा० ९२ ५. नाटयशास्त्र, अ० १७, श्लो० १ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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