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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : २ ६५ व अध्याय में क्षत्रियों की उत्पत्ति का निरूपण है । आगे चल कर महाभारत में जितना जो मिलाया जाता रहा, उससे यह निकाल पाना बड़ा कठिन हो गया कि वस्तुतः भ्यासदेव की यथार्थ रचना कितनी है और कौन-सी है। कौरवों और पाण्डवों की मृत्यु के पश्चात् व्यास ने इस ग्रन्थ को प्रसृत किया। इसे ग्रन्थ का प्रथम संस्करण कहा जा सकता है।
अर्जुन का पौत्र और अभिमन्यु का पुत्र परीक्षित था। शृगी ऋषि के शाप के कारण सर्प-दंश से उसकी मृत्यु हुई । उसके पुत्र का नाम जनमेजय था। उसने समग्र सो को नष्ट करने के लिए नाग-यज्ञ किया। कहा जाता है, महर्षि व्यास भी इस यज्ञ में उपस्थित हुए थे। जनमेजय ने उनसे प्रार्थना की कि उसके पूर्वजों-पाण्डवों तथा कौरवों के युद्ध का वर्णन कृपा कर सुनाए । व्यासदेव ने स्वयं तो अपना जय महाकाव्य नहीं सुनाया, पर, अपने शिष्य वैशम्पायन को वैसा करने की आज्ञा दी। गुरु के आदेश से वैशम्पायन ने वेसा किया। वैशम्पायन उक्त ग्रन्थ सुनाते जाते थे। जनमेजय बीच-बीच में कुछ जिज्ञासाए एवं प्रश्न करते जाते थे। वैशम्पायन उनका समाधान करते जाते थे। ऐसा प्रतीत होता है, पैशम्पायन जो समाधान देते थे, वे व्यास-रचित महाभारत में नहीं थे । धेशम्पायन अपनी ओर से ऐसा करते थे या किसी दूसरे स्थान से उन्हें वे प्राप्त थे, यह ज्ञात नहीं है। व्यास के मूल भाग के साथ ये समाधानात्मक अंश मिल गये या मिला दिये गये । इस प्रकार महाभारत का एक दूसरा संस्करण तैयार हो गया, जो पहले से विस्तृत था । वैशम्पायन के माध्यम से परिवद्धित इस संस्करण का नाम भारत संहिता पड़ा । आदि पर्व में इस सम्बन्ध में उल्लेख है :
चतुर्विशतिसाहस्री चक्र भारतसंहिताम्,
उपाख्यानविना तावद् भारतं प्रोच्यते बुधैः । उपाख्यानों को छोड़कर भारत संहिता में २४ सहस्र श्लोक हैं। इससे अनुमान होता है कि व्यास ने जो जय महाकाव्य की रचना की, उसमें २४ सहस्र से कम श्लोक रहे होंगे। परन्तु, 'बहुत कम नहीं हो सकते। वैशम्पायन ने कुछ ही अंश जोड़ा होगा। कुछ ही समय बाद एक और प्रसंग बना। शौनक ऋषि ने नैमिषारण्य में बारह वर्ष तक चलने वाले एक यज्ञ का आयोजन किया। अनेक वेदपाठी विद्वान्, ज्ञानीजन और ऋषिगण उसमें उपस्थित हुए। आगप्त ऋषियों में रोमहर्षण ऋषि के पुत्र सोति ऋषि भी थे। सौति परीक्षित के पुत्र जनमेजय द्वारा किये गये नाग-यज्ञ में भी सम्मिलित हुए थे और उन्होंने वहां वैशम्पायन द्वारा उपस्थापित महाभारत के पाठ का भी श्रषण किया था। सौति ने महाभारत का वह पाठ वहां सुनाया। साथ-ही-साथ उपाख्यान भी सुनाये। महाभारत की कथा सुनाते समय सौति ने बीच-बीच में जहां अपेक्षित
१. महाभारत, आदि पर्व, १,७८
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